लखीमपुर_खीरी

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले के धौरहरा क्षेत्र में बाढ़ में बह गए एक पुल को दो दशक बाद भी नहीं बनवाया जा सका है। इस पुल के न होने से उस पार बसे दर्जनों गांवों की करीब पचास हजार की आबादी अपरोक्ष रूप से प्रभावित है। धौरहरा क्षेत्र में पण्डित पुरवा-सुजईकुण्डा मार्ग पर बह रहे दहोरा नाले के उस पार बसे दर्जनों गांवों के निवासियों को तहसील और जिला मुख्यालय आने के लिए कुछ मिनटों की दूरी घंटों में तय करनी पड़ती है। लोग जान जोखिम में डालकर नाव से आवागमन करते हैं। आलम यह है कि यहां पर प्रशासन नाव भी उपलब्ध नहीं करवा रहा है। लोग प्राइवेट नाव से किराया देकर दहौरा नाले को पार कर रहे हैं।

पुल होनेके चलतेनाव सेनाला पारकरते हैं_गांव वाले

1986 में बनवाया गया पुल कुछ समय बाद टूटा
सन् 1986 में बाबू बनारसी दास के मुख्यमंत्री रहते यहां से विधायक रहे तेजनरायन त्रिवेदी के प्रयासों से पांच लाख की लागत से पंडित का पुरवा-सुजई कुण्डा मार्ग पर दहोरा नाले पर लगभग 30 मीटर लंबे पुल का निर्माण कराया गया था। तब से करीब दस वर्ष तक लगभग दो दर्जन गांवों की 50 हजार आबादी के अलावा धौरहरा कस्बे और आसपास के लोग अपना सफर तय करते थे। 1996 में बाढ़ आई और पानी की धारा ने हल्की करवट ली और इसकी दीवारें धराशायी हो गईं। क्षेत्रीय लोगों के प्रयास से सन् 1997 में जिला पंचायत अध्यक्ष रही लीला देवी ने मरम्मत के लिए सवा लाख रुपये उपलब्ध करवाए। प्राप्त धन और ग्रामीणों के श्रमदान से 1997-1998 में मरम्मत करवाई गई और क्षेत्रीय लोगों का आवागमन बहाल हो गया। फिर 2002 में आई भीषण बाढ़ ने पुल का अस्तित्व ही समाप्त कर दिया।

दो दर्जन से ज्यादा गांव वालों को होती है परेशानी
पुल के धराशायी होने के कारण यहां के पंडित पुरवा, मगरौली, लहसौरी पुरवा, टापर पुरवा, घोसियाना, सुजई कुण्डा,नज्जापुरवा, भटपुरवा, धारीदासपुरवा, हरसिंहपुर, सुनारनपुरवा, बिन्जहा, मगरौली, फुटौहापुरवा बाछे पारा सहित करीब दो दर्जन गांवों का सीधा संपर्क बरसात में तहसील मुख्यालय से समाप्त हो गया है। ग्रामीण जान जोखिम में डालकर नाव से अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने तहसील मुख्यालय आते हैं।

लोग पुल के टूटने के पीछे निर्माण की तकनीकी खामियों को मुख्य वजह बताते हैं। फिलहाल पुल के पुन: वजूद में आने की दरकार है क्योंकि धौरहरा जाने के लिए लोगों को अब दो किलोमीटर की जगह बीस किलोमीटर या फिर नदी पार करके जान जोखिम में डालकर यह दूरी तय करनी पड़ती है। इससे लगभग पचास हजार आबादी मूल सुविधाओं से दूर है

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