कुछ ऐसे ही वादे 2012 में किए गए थे कि मुसलमानों की पुलिस/ पीएसी में स्पेशल भर्ती करेंगे, 18% आरक्षण देंगे …वगैरा-वगैरा अगर उनका घोषणा पत्र और उस वक्त चुनावी रैलियों में किए गए वादे जाने जाएं फिर 2017 तक के कारनामे देखे जाएं तो मालूम होता है अल्पसंख्यकों व किसानों से किया हुआ कोई वादा पूरा नहीं हुआ, बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता के नाम पर बेवकूफ बनाया गया, बेचारे जिला सेवायोजन कार्यालय में तीन तीन दिन तक लाइन में लगे रहे, एक आध किस्त आने के बाद आज तक इंतजार ही कर रहे हैं!
जनता को झांसावाद, परिवारवाद, जातिवाद, धर्मवाद, भ्रष्टाचार, वसूली, गुंडई और अत्याचार का दौर देखने को मिला!
हर जगह दलाली, ठगी, दबंगई और जातिवाद के अलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता था…. 4 साल में बंदरबांट इतना बढ़ गया कि अंत में आपस में ही झगड़ा हो गया और कुछ लोगों की पिटाई हुई कोई पार्टी से निकाला गया… उसमें से कुछ लोग फिर नेता जी के पैर दबाने लगे!
असल में इनकी कोई नीति नहीं है न स्थाई विचारधारा है बस बेवकूफ बनाने की फैक्ट्री खोल रखी है!
जहां कुछ रंगेशियारों को अगुआकर किया जाता है जो अपने समाज के लोगों को बेवकूफ बनाकर सपने दिखाएं और वोट बटोर लें!
इनके पास कुछ खरीदे हुए स्वार्थी लोग हैं जिन्हें पद दिए जाते हैं पद पाने के बाद इनका समाज से कोई वास्ता नहीं सिर्फ अपनी संपत्ति को 4 गुना करने में लगे रहते हैं… इनके साथ चलने वाले इस ताक में हैं कब फिर से वही गुंडाराज आए और हम ठेका लें वसूली करें ऐश काटें…!
90% बेईमान और स्वार्थी लोग इसी फिराक में हैं कब लूटने का मौका मिले!
असल में वो किसी धर्म के मानने वाले नहीं हैं, उनका एक ही धर्म है धन!
इस पार्टी की कथनी और करनी से लगता है कि यह किसी के प्रति वफादार नहीं है यहां तक कि जिस बिरादरी की है उसकी भी नहीं!
जो लोग आर एस एस की तो निंदा करते हैं लेकिन इस पार्टी के पीछे जवानी कुर्बान कर रहे हैं क्योंकि उन्हें नहीं मालूम इनके तार कहां से जुड़े हैं और इन्हें कौन चला रहा है!
अत्याचार और भ्रष्टाचार के उस दौर में न जाने कितने बेगुनाह मुसलमान और किसान थाना, कचहरी में लूटे जाने के बाद भी जेल गए और न जाने कितनों की सांसो को मिट्टी में दबा दिया गया जिसकी दुर्गंध तक नहीं महसूस की जा सकी!
लेकिन ये स्वार्थी जमूरे समाज का ठेका लिए घूम रहे हैं, इन्हें लगता है हम फिर बेवकूफ बना लेंगे… अगर ये अपनी चाल में कामयाब हो गए तो फिर… क्या होगा अल्लाह ही जाने!
हमें चाहिए ईमानदार लोगों का साथ दें!
जो हमारी आवाज उठाता है हम उसकी आवाज उठाएंगे!
जो हमें बेवकूफ बनाता है हम उसे बेवकूफ बनाएंगे!
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वर्मा, पिछड़ा वर्ग इस बात को समझ रहा है वह हरगिज इनका साथ नहीं देगा! दलित तो इनसे बिल्कुल दूर है!
अल्पसंख्यक को भी ये बात समझना चाहिए और 2012 से 2017 तक का विश्लेषण कर निष्कर्ष निकालें कि उन 5 वर्षों में हमारे लिए क्या-क्या बुनियादी काम हुए थे… इस आकलन में मंत्रियों की संख्या और उनके जमूरों को दिए जाने वाले व्यक्तिगत लाभ न गिनना!
हमारे मुंह से जो निकले वही सदाकत है!
हमारे मुंह में दूसरे की जुबान थोड़ी है!
—लेखक मोबीन ग़ाज़ी कस्तवी