आजादी के बाद से मुसलमानों ने कभी कांग्रेस को अपनाया कभी जनता पार्टी को अपनाया तो कभी बसपा को अपनाया तो कभी समाजवादी पार्टी को अपनाया!
दिल में रत्ती भर भी चालाकी लाए बगैर कभी ब्राम्हण को वोट दिया तो कभी क्षत्रिय को वोट दिया तो कभी गुप्ता को वोट दिया तो कभी यादव को दिया तो कभी जाटव को वोट दिया यहां तक कि जो हमदर्दी और विकास का झूठा चोला पहन कर आया सबको दिया और वोट ही नहीं दिया बल्कि उस को नेता बना दिया तन मन धन से उसका साथ दिया कभी बिहार में लालू यादव ने मलाई काटी तो उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह, मायावती, अखिलेश सबने रसगुल्ले खाए और मुसलमानों को जलाउ पीने को दे दिया!
हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने जब शुरुआत की तो दक्षिण अफ्रीका में उनके आंदोलन का शत-शत साथ मुसलमानों ने दिया!
डॉ. आंबेडकर को आज इतना सम्मान प्राप्त है सोचो अगर वह संविधान सभा में न गए होते क्या तब भी उन्हें इतना सम्मान मिलता और उनके समाज को इतने अधिकार, उन्हें इस लायक किसने बनाया? उनका पूरा साथ और सहयोग किसने दिया?
काशीराम जी ने आंदोलन की शुरुआत किस से प्रेरित होकर की, शुरुआती दिनों से ही उनका साथ और सहयोग किसने दिया?
मायावती जी को मुख्यमंत्री बनाने में किस ने दिल खोलकर साथ दिया?
लालू यादव और मुलायम सिंह यादव का चट्टान की तरह साथ और सहयोग किसने दिया किस ने इन्हें नेता बनाने में पूरा सहयोग किया?
मुसलमान का साथ सहयोग सबको चाहिए और मुसलमान की बारी आने पर सब किनारा कर जाते हैं!
मुसलमान भी दूसरों के लिए 80% एक जगह इकट्ठा हो सकते हैं लेकिन अपने लिए अपने भाई के लिए 20% भी इकट्ठा नहीं हो पाते!
क्योंकि लोमड़ी से भी चतुर ये सेकुलर पार्टियों के नेता कुछ मुसलमानों को पाले रहते हैं कि जैसे ही कोई इनकी कयादत की बात करेगा या हमारी कलई खोलेगा तो हम इनसे ही गाली दिलवाएंगे उसे बुरा भला कहलवाकर भोले भाले मुसलमानों को गुमराह कर देंगे!… मुसलमान अपने निजी स्वार्थ में अंधा है उसे कौम की बर्बादी और भविष्य नहीं दिखता… लोमड़ी से भी चतुर लोगों के जाल में ऐसे फंसते हैं कि निकल ही नहीं पाते!
सबको यही लगता रहता है कि हम ज्यादा खास हैं हम ज्यादा खास हैं इस बार उपमुख्यमंत्री हम ही बनेंगे …वक्त पर खास कोई नहीं होता!
अरे 3%, 7% और 9% वाला मुख्यमंत्री बन सकता है अपने समाज का नेता बन सकता है तो 25% वाला क्यों नहीं? मुसलमान की सबसे बड़ी कमी ये है कि वह सबसे ज्यादा बुराई मुसलमान की ही करता है… किसी तरह भैया खुश हो जाएं!
मैं पूछता हूं एक खास पार्टी के दीवाने मुसलमानों से 75 जिलों में पार्टी के कितने अध्यक्ष मुसलमान हैं?
तुम्हारी आबादी 25% के हिसाब से लगभग 19 होना चाहिए तब होगी बराबरी की बात!
असल बात ये है हमारा हमदर्द कोई नहीं है क्योंकि हम खुद अपने हमदर्द नहीं हैं!.. हमें शेर से डराकर चीता अपनी तरफ बुलाता है… कब तक हम शिकार होते रहेंगे!
जब हमारे लिए सब एक ही जैसे हैं तो हमें किसी के हारने जीतने का ठेका/ डर छोड़ कर अपनी बात करना शुरू कर देना चाहिए!
जब बसपा हारती है तो कहती है मुसलमानों ने वोट नहीं दिया, जब सपा हारती है तो कहती है मुसलमानों ने वोट नहीं दिया…जब जीतती है तो नहीं कहती कि मुसलमानों ने वोट दिया!
जबकि सच्चाई ये है इनको हर बार शत प्रतिशत वोट मुसलमान ही देता है!
पंचायत चुनाव में किससे सांठगांठ करके अपने भाई भतीजे जिता लिए और उनकी बिरादरी के सदस्यों ने किसे वोट दिया?
मजे की बात ये है अगर किसी मुसलमान ने भाजपा को वोट दे दिया तो उसका खूब प्रचार किया गया कि फला ने हमे वोट नहीं दिया, पाले हुए स्वार्थी मुसलमानों ने भी उसे खूब गालियां दी!
मैं पूछता हूं उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी और चंद्रशेखर, शिवपाल यादव आदि वोट कटवा नहीं है क्या इनकी सरकार बन जाएगी फिर मुसलमान या अन्य इन्हें वोट कटवा क्यों नहीं कहते इनके तो पीछे पीछे घूम रहे हैं इन्हें नेता बनाने में सहयोग कर रहे हैं!
एक सच्चाई ये भी है कुछ पार्टियां बैलेंस बनाने के लिए मुसलमानों को टिकट तो देती हैं लेकिन कहीं न कहीं ये भी चाहती हैं कि मुसलमान जीतने न पाए, क्योंकि जहां एक पार्टी मसलन AIMIM मुसलमान को टिकट देगी वहां सपा, बसपा, कांग्रेस व अन्य भी मुसलमानों को ही टिकट देंगे ताकि ये जीतने ना पाए कोई जीत जाए तो क्या!
हमें राजनीति को समझना होगा, हमारे लिए मलाई लेकर कोई नहीं आएगा, हमें खुद भैंस पालकर उसके चारा पानी का प्रबंध करके उसे दुहकर(लगाकर) तपती हुई भट्टी के पास बैठकर दूध उबालना होगा, तब मलाई खाने को मिलेगी!
अन्यथा दूसरों का दूध उबालते रहो भैंस चराते रहो जब मलाई तैयार हो जाएगी तो नहा धोकर भैया अपने परिवार के साथ आ जाएंगे कहेंगे तुम रुक जाओ सलमान, मेरे बेटे को खा लेने दो सलमान मुंह ताकते खड़े रह जाएंगे!
मैं हिंदू और मुसलमान के साथ जातिवाद व परिवारवाद का घोर विरोधी हूं लेकिन हर जगह धर्म वाद, जातिवाद और परिवारवाद ही हो रहा है! इसलिए मजबूरन मुझे भी इस का सहारा लेना पड़ रहा है!
मैं तो कहता हूं कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को लागू किया जाए देश में जो सबसे पिछड़े हैं वंचित हैं जिन की साक्षरता दर सबसे कम है जो नौकरियों में सबसे कम हैं जो राजनीति में सबसे कम हैं, जिनका आज तक कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री नहीं बना है उनको मौका दिया जाए वह चाहे जिस जाति धर्म या परिवार के हों, पूरी ईमानदारी से इस नीति पर चला जाए मैं इसके साथ हूं! अफसोस दर अफसोस मुझे तो दूर-दूर तक यह सिद्धांत कहीं दिखाई ही नहीं पड़ता!
— लेखक आपका भाई/ दोस्त मोबीन गाज़ी कस्तवी