मुरारी यादव बाराबंकी जिला संवाददाता

मिस्कापुर छुलिहा शबरी और मातंग ऋषि का उदाहरण देते हुए महाराज जी ने कहा कि मातंग ऋषि ने शबरी को अपने आश्रम में स्थान देते हुए लोक लाज के कारण स्वयं आश्रम से बाहर जाने लगे तो शबरी के इस प्रश्न पर कि बिना आपके मेरा मार्गदर्शन कौन करेगा,ऋषि ने वरदान देते हुए कहा मैं बाहर रहकर भगवान की तलाश करूंगा जबकि भगवान तेरी तलाश करेंगे।


वृंदावन की अनुपम छवि और उस पवित्र भूमि की महत्ता को बताते हुए महाराज श्री कहते हैं कि रज कण भी भाग्यशाली हैं जिनमें भगवान खेल रहे हैं।
गोवर्धन की पूजा,गायों के बीच रहना,माखन चुराना, साहस से परिपूर्ण जीवन, परम कल्याणकारी रूप वाले श्री भगवान का चित्त में दर्शन करके जीवन की धन्य बनाने का प्रयास करना चाहिए।
इन्द्र की पूजा छोड़ गोवर्धन की पूजा कराने से इन्द्र नाराज हो गया।इन्द्र कुपित हो गया। भारी वर्षा होने लगी।7 वर्ष की आयु में अपनी सबसे छोटी उंगली पर गोवर्धन को उठा लिया।सब सुखी हो गए।भगवान सब काम करते है लेकिन श्रेय सबको देते हैं,यही हमारे भी जीवन का आधार होना चाहिए।सत्कर्म ही पूजा होनी चाहिए।


वंशी से सबको मोहने वाले और मोहिनी रूप धारण करने वाले,वैजन्ती की माला गले में डाले हुए ऐसे द्वारिकनाथ की छवि का वर्णन नहीं किया जा सकता।
बल से बड़ा एक बल है छल। नीति कहती है कि जिससे जीता न जा सके उससे संधि कर लेनी चाहिए और उसे विश्वास में लेकर उसका अंत कर देना चाहिए।कंस इसी नीति के उपाय से कृष्ण को मारने के कई बार असफल प्रयास किए।लेकिन कृष्ण सबसे बड़े छलिया हैं।सबको परास्त करके कृष्ण धर्म की स्थापना करते हैं।


कथा में बाबा परमेंद्र विक्रम सिंह बाबा,सुरेंद्र विक्रम सिंह,अमित सिंह,अमित वर्मा,अमरेंद्र प्रताप सिंह,अनिल गुप्ता,विजय कुमार,लखराज सिंह,हरेंद्र सिंह,विनय शर्मा,अंगद सिंह,शिव कुमार श्रीवास्तव,उत्तम शर्मा सहित तमाम भक्त उपस्थित रहे।

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