*साहिब-ए-इस्तेताअत मुसलमानों पर क़ुरबानी वाजिब है*
*_लेकिन यह भी ज़रूरी है कि हमारे अमल से किसी को ठेस न पहुंचे_* (शिक्षा तकनीक एवं अनुसंधान समिति जिला अध्यक्ष शामली सहारनपुर मंडल अध्यक्ष दानिश खान ईद-उल-अज़हा मुसलमानों का एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है, जो हमें अल्लाह के दो पैग़म्बरों हज़रत इब्राहीम (अलैह सलाम) और हज़रत इस्माईल (अलैह सलाम) की याद दिलाता है और हमें इस जानिब ध्यान दिलाता है कि अल्लाह की रज़ा की ख़ातिर हर तरह की क़ुरबानी के लिए तैयार रहें और अक़ीदा-ए-तौहीद पर साबित क़दम रहें, इस अवसर पर जानवरों की क़ुरबानी भी की जाती है, शरीयत का यह हुक्म मालदार मुसलमानों से मुताल्लिक़ है और दुनिया के दूसरे धर्मों में भी इसका तसव्वुर मौजूद है; लेकिन क़ुरबानी करते हुए यह बात ज़रूरी है कि हम कोई ऐसा अमल न करें जो दूसरे भाईयों के लिए दिल दुखाने का कारण बने, शान्ति को नुक़सान पहुंचे, गन्दगी फैले, बदबू पैदा हो, जानवर का बदबूदार हिस्सा रास्ते में और आबादियों के अन्दर फ़ेंक दिया जाए, यह सारी बातें शरीयत के भी ख़िलाफ़ हैं, अख़लाक़ के भी और क़ानून के भी, सेहत की हिफ़ाज़त और समाज को बीमारियों से बचाना सभों की ज़िम्मेदारी है; इसलिए सरकार ने गन्दगियों के फेंकने की जो जगह तय की है, उनको वहीं फेंकना चाहिए, सफ़ाई सुथराई और भाईचारे की बरक़रारी का ख़्याल रखें।
✍🏼 जारीकर्ता
*दानिश ख़ान शामली*