एक आवाज खामोश हो जाती ॥
रोहित सेठ
जीवन की परिस्थितियों जब करवट बदलती हैं तो जीवन के कई आयामों को पार कर धुरी पर घूमती हैं मन हिलोरे ले रहा होता है धुरी से परिधि तक …..
एक इंसान के रूप में जन्म होते ही पहला आयाम परमात्मा की दी हुई आवाज और वह बच्चों के रोने की जो आवाज है मानो कंठ का रुदन ही संसार में आने का संकेत दे रहा हो..
इस आवाज के माध्यम से शरीर अनेकों आयाम से घिरा होता है न जाने कितनी कलाएं दिखाती और आवाज सिहर सी जाती धीरे धीरे जीवन की धुरी पर बीतता है बचपन और यौवन ….फिर आती वृद्धावस्था की अवस्था जिसमे धूमिल होती वह तमाम यदि….जहां अनकहे शब्दों में न जाने कितनी यादों की लड़िया….. और जब आता अंत समय तो जिस आवाज़ की आयाम से संसार में आने की खबर होती वहीं आवाज एक दिन शिथिल होकर खामोश होती सांसों के रूप में और अंत हो जाता गले का रुदन स्वतंत्र हो जाती सांसे देह का त्याग कर परम में विलीन हो जाती थमती सांसे धीमी होती आवाज….
एहसास कराती की खामोशी के रास्ते पर जाना है जहां शून्य इंतजार कर रहा है तुम्हारी आवाज का खामोश हो जाने का और एक नया आयाम देने के लिए….
एक वक्त के बाद आवाज से आवाज तक का सफर … खामोशी में बदल जाता है और एक आवाज खामोश हो जाती है अलविदा हो जाती है इस संसार से और तमाम यादे खामोश हो जाती हैं उसे आवाज के साथ रह जाती है तो सिर्फ ….””खामोशी”” “”खामोशी”” “”खामोशी””