कार्तिक मास का नाम कार्तिकेय स्वामी के नाम से पड़ा

सूरज गुप्ता
सिद्वार्थनगर।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं0 मनीष शर्मा के मुताबिक रकंद षष्ठी पर भगवान कार्तिकेय, शिव-पार्वती की पूजा करनी चाहिए। पूजा की शुरुआत प्रथम पूज्य गणेश जी के ध्यान के साथ करें। पूजा में भगवान का जल, दूध और फिर जल से अभिषेक करें। वस्त्र, हार-फूल से श्रृंगार करें। मिठाई का भोग लगाएं और धूप-दीप जलाकर आरती करें। जानिए कार्तिकय स्वामी से जुड़े खास प्रसंग –
कार्तिकय स्वामी ने किया था तारकासुर का वध पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर नाम के एक असुर ने तप करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया था। ब्रह्मा जी तारकासुर के सामने प्रकट हुए और उन्होंने उससे वरदान मानने के लिए कहा। तारकासुर ने ब्रह्मा जी से कुछ ऐसा वरदान मांगना चाहता था, जिससे वह अमर हो जायें। उस समय देवी सती के वियोग में शिव जी ध्यान में थे। उनका ध्यान तोड़ना किसी भी देवी-देवता के लिए सम्भव नहीं था। तारकासुर ने सोचा कि अब शिव जी ध्यान में ही रहेंगे दूसरा विवाह नहीं करेंगे। इसलिए तारकासुर ने ब्रह्मा जी से वर मांगा कि उसका वध शिव पुत्र के हाथों ही हो। ब्रह्मा जी ने तारकासुर को ये वर दे दिया। वरदान पाकर तारकासुर बहुत ताकतवर हो गया था। सभी देवता उसका वध नहीं कर पा रहे थे। तारकासुर ने धरती, स्वर्ग और पाताल तीनों लोकों में अपना अधिकार कर लिया था। सभी देवता दुखी होकर विष्णु जी के पास पहुंचे। विष्णु जी ने योजना बनाई कि तारकासुर को मारने के लिए शिव जी का दूसरा विवाह करवाना होगा। इसके बाद शिव जी का ध्यान भर करने के लिए कामदेव को कहा गया। कामदेव ने अपने काम वाणों से शिव जी का ध्यान तोड़ दिया था। उस समय हिमालयराज की पुत्री पार्वती शिव जी को वर रूप में पाने के लिए तप कर थी। देवी के तप से शिव जी प्रसन्न हो गयें और बाद में शिव-पार्वती का विवाह हुआ। विवाह के बाद शिव जी के पुत्र कार्तिकेय का जन्म हुआ। कार्तिकेय का पालन शिव-पार्वती से दूर कृतिकाओं ने किया था। इसलिए बालक का नाम कार्तिकेय पड़ा। जब कार्तिकेय थोड़े बड़े हुए तो शिव-पार्वती ने कार्तिकेय को अपने पास बुला लिया। कार्तिकेय के बारें में देवताओं को मालूम हुआ तो सभी शिव-पार्वती के पास पहुंचे। देवताओं ने कहा कि आप कार्तिकेय की हमारे साथ भेज दें तांकि इनके हाथों ही तारकासुर का वध होगा। देवताओं और तीनों लोकों की भलाई के लिए शिव जी ने कार्तिकेय स्वामी को देवताओं का सेनापति बनाकर भेज दिया। बाद में कार्तिकेय स्वामी और तारकासुर का युद्ध हुआ। युद्ध में कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया। जब ये बात शिव जी को मालूम हुई तो वे बहुत प्रसन्न हुए, जिस समय कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया था, तब हिन्दी पंचाग का आठवां महीना ही चल रहा था। अपने पुत्र की सफलता से खुश होकर शिव जी ने इस महीने का नाम कार्तिक रख दिया। एक दिन शिव जी और पार्वती जी अपने पुत्रों कार्तिकेय और गणेश के विवाह के बारें में विचार किया। ये विचार आने के बाद शिव-पार्वती ने दोनों से कहा कि जो व्यक्ति सृष्टि की परिक्रमा करके पहले लौट आयेगा, उसका विवाह पहले करा दिया जायेगा।

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