भारतवर्ष में मज़लूमों, पिछड़ों,अल्पसंख्यकों को इंसाफ मिलने का आखरी सहारा सर्वोच्च न्यायालय ही रहगया है।अगरचे बाबरी मस्जिद का फैसला उम्मीद पर खरा नहीं उतरता दिखा।इसीप्रकार ज्ञान वाफी मस्जिद के मामले में भी न्यायालयों का रवैय्या संतोषजनक नहीं रहा है लेकिन इनसब के बावजूद हम यही कहकर संतुष्ट हो जाते हैं कि “आई विल सी यू इन द कोर्ट “गत सप्ताह माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय ने बहुत से एतिहासिक फैसले दिए है जो वर्षों तक याद रखे जाएं गे।और रिटायरिंग मुख्य न्यायाधीश श्री डी वाई चन्द्रचुड महोदय भी याद रखे जाएंगे।आसाम नागरिकता कानून मदरसों से संबंधित फैसले और आज का अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक दर्जा बहाली फैसले मील का पत्थर साबित होंगे। साम्प्रदायिक संगठनों,सरकारों जो मुसलमानों के तमाम अधिकारों को छीनने पर तुली हुई हैं,बुलडोज़र जैसी हिटलरी तानाशाही कार्रवाईयों कोरोक कर अदालतों पर विश्वास को बहाल किया है।सरकार की चापलूसी में लिप्त हर जायज़ नाजायज़ फ़ैसलों की वाहवाही करने वाले मुसलमानों के मुँह पर भी कालिख पुत गई है।एक बार पुनः तमाम अमन पसंद, सेक्युलर ज़ेहन के लोग हम जैसों का मुबारकबाद क़बूल करें जो हर हाल में क़ानून की बात करते हैं।एस एम यासीन संयुक्त सचिव अंजुमन