एक दशक पहले बनारस में ताबड़तोड़ अपराध और रंगदारी वसूल चर्चा में आया था अजय विजय

लखनऊ कांड से वाराणसी कमिश्नरेट पुलिस और यूपी एसटीएफ के कान खड़ें

चर्चाओं के अनुसार गुपचुप तरीके से अजय विजय बनारस में फिर से रंगदारी वसूली के धंधे को चालू करने की फिराक में

4 अप्रैल 2013 को तत्कालीन इंस्पेक्टर कैंट अनिरुद्ध सिंह ने पहड़िया क्षेत्र से पकड़ा था, उस समय अजय विजय पर 50 हजार का इनाम घोषित था

उसके पास से पुलिस को नाइन एमएम की पिस्टल, सात कारतूस व एक खोखा मिला था

वाराणसी और उसके बाद बांदा जेल में रहने के दौरान अजय विजय कुछ और बड़े अपराधियों और मठाधीशों की संगत में आया और अपने गिरोह को जेल से ही बढ़ाने के प्रयास में लगा रहा

वर्ष 2007 से डॉक्टर डीपी सिंह की हत्याकर अपराध की काली दुनिया में कदम रखने वाले अजय के ऊपर वाराणसी व गाजीपुर समेत अन्य जिलों में हत्या, हत्या के प्रयास, रंगदारी, अपहरण, गैंगस्टर आदि के 19 मुकदमे दर्ज हैं।

अजय विजय फतेहपुर जिले के खागापुरैनी गांव का मूल निवासी है

भभुआ (बिहार) के भगवानपुर गांव के मुखिया छोटन पांडेय उसका मददगार है, मददगार के रूप में नीतीश सिंह बबलू का नाम भी चर्चा में रहता था जिसकी 30 सितंबर 2019 को वाराणसी सदर तहसील में हत्या
कर दी गई थी

छोटन पांडेय की मदद से अजय विजय ने झारखंड के रांची को अपना ठिकाना बनाया था और वही एक किराये के मकान से रंगदारी वसूली का सिंडिकेट ऑपरेट करता था

अजय के पकड़ाने के कुछ दिन पूर्व उसके दो खास साथी सोनू गोस्वामी व चिंटू भी पकड़ाए थे

उस समय अजय ने वरुणापार इलाके के डॉक्टरों, कारोबारियों व मेडिकल स्टोर संचालकों को निशाना बना रखा था।

उस समय सनी सिंह और वरुण सिंह के नाम इसके शरणदाता के रूप में चर्चा में थे

अजय ने सुपारी लेकर डॉ. वीपी सिंह की हत्या की थी और रंगोली गार्डेन के मालिक श्यामदेव पर जानलेवा हमला भी कराया था

गाजीपुर के सैदपुर में दिसंबर 2012 में इसने दुस्साहसिक तरीके से सोनार भाइयों की हत्या कर लूट की बड़ी घटना को अंजाम दिया था
फिलहाल अजय विजय जेल से बाहर है और लखनऊ के गोमती नगर के विनीत खण्ड में विजय शंकर सिंह को गोली मारे जाने के मामले में लखनऊ पुलिस को उसकी तलाश है, लखनऊ गोलीकांड के तार सुल्तानपुर से जुड़े है और इस मामले में शातिर अजय विजय का नाम आने से लखनऊ से लेकर वाराणसी तक कि पुलिस अलर्ट मोड में आ गई है वाराणसी से प्रियंका पटेल

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