रिपोर्ट_ मोहम्मद ज़ीशान तहसील प्रभारी धामपुर

बिजनौर। थाना कोतवाली देहात के ग्राम करौंदा चौधर में शुक्रवार शाम खुदाई के दौरान पौराणिक सिक्के मिले हैं। पुलिस ने सिक्कों को कब्जे में लेकर जिला प्रशासन को सूचना दे दी। पुलिस के अनुसार सिक्के पुरातत्व विभाग को भेजे जाएंगे।इसके बाद ही सही जानकारी हो पाएगी। हालांकि एक व्यक्ति के अनुसार सिक्कों पर अरबी भाषा में सन् 1191 लिखा हुआ है, जिससे माना जा रहा है कि सिक्के लगभग 800 साल पुराने हैं। पुलिस के अनुसार गांव करौंदा चौधर में मनरेगा के अंतर्गत रोजगार सेवक के दिशा निर्देशन में कब्रिस्तान की चारदीवारी कराई जा रही है। शुक्रवार शाम खुदाई के दौरान मजदूर को मिट्टी की एक हांडी दबी मिली। उसने हांडी खोली तो उसमें 15 पौराणिक सिक्के मिले। उसने तत्काल जानकारी रोजगार सेवक नौशाद को दी। उसने इन सिक्कों के बारे में ग्राम प्रधान इकरार अंसारी को बताया। प्रधान ने सिक्के देखे जो सफेद रंग के थे। माना जा रहा है कि यह पुराने समय के चांदी के सिक्के हैं। सिक्कों पर अरबी भाषा में कुछ लिखा हुआ है।प्रधान इकरार की सूचना पर कोतवाली देहात प्रभारी निरीक्षक राजेश कुमार मौके पर पहुंचे और सभी 15 सिक्कों को कब्जे में ले लिया। प्रभारी निरीक्षक ने जिला प्रशासन को सूचना दी है। उच्चाधिकारियों के आदेश के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।

एक व्यक्ति ने बताया कि सिक्कों पर सन 1191 लिखा है, जिससे माना जा रहा है कि सिक्के लगभग 800 साल पुराने हैं।आपस में बांट लिए थे सिक्केग्रामीणों की मानें तो सिक्के मिलने के बाद मजदूरों ने आपस में बांट लिए थे, लेकिन अन्य लोगों को इसकी भनक लग गई। उन्होंने ग्राम प्रधान को सूचना दी। इसके बाद मामला पुलिस में पहुंचा और थाना प्रभारी ने रात में ही लोगों से सभी सिक्के अपने कब्जे में लिए।बढ़ापुर में निकलती रही हैं मूर्तियांबढ़ापुर से करीब चार किमी दूर पूर्वी दिशा में स्थित काशीवाला के खेतों व जंगल में प्राचीन जैन धर्म की वैभवशाली संस्कृति के भग्नावशेष छिपे हुए हैं। काशीवाला में एक प्राचीन खंडहरनुमा दिखने वाले स्थान को क्षेत्रवासी पारसनाथ के किले के नाम से जानते हैं। यहां पर 1951 में एक किसान को मूर्ति दिखाई पड़ी थी, तब से यहां मूर्तियों के निकलने का सिलसिला चला आ रहा है। इस स्थान पर पूर्व में खुदाई के दौरान मिलने वाली जैन धर्म से संबंधित मूर्ति, मंदिरों एवं किले के अवशेष आदि निकलते रहे हैं। यह अवशेष यहां पर प्राचीन समय में किन्ही जैन आचार्यों की स्थली या जैन धर्म अनुयायियों की कोई विशाल बस्ती या किसी जैन राजा का साम्राज्य होने की गवाही देते हैं। वर्ष 1951 काशीवाला निवासी सिख हरदेव सिंह को खेत समतल करने के दौरान एक विशाल आकार की मनोरम मूर्ति मिली थी। मूर्तियों को मंदिर काशीवाला में ही रखा गया है। समय समय पर पुरातत्व विभाग की टीम काशीवाला में निरीक्षण के लिए आती रहती है।मोरध्वज के किले की खुदाई में आज भी मिलते हैं बड़े पत्थरनजीबुद्दौला के किले में लगे पत्थरों में एकरूपता है। पत्थरों को एक दूसरे से जोड़ने के लिए जो हुक इस्तेमाल किए गए थे, वह भी एक समान हैं। माना जाता है कि नजीबुद्दौला ने मोरध्वज के किले को नष्ट करके उसके पत्थरों से अपने नाम पर यह किला बनवाया। सन् 1887 की क्रांति के बाद अंग्रेजों ने इसके अधिकांश भाग को गिरा दिया। आज भी खेतों-जंगलों में खुदाई के दौरान धातु की वस्तु आदि निकलती रहती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You missed

preload imagepreload image