
शिव महापुराण का तृतीय दिवस।
रोहित सेठ
वाराणसी/ शिव महापुराण का तृतीय दिवस शनिवार की कथा में पूज्य बाल व्यास पंडित कृष्ण नयन जी महाराज ने श्रोताओं को शिव महात्म के बारे में बताया| शिव महापुराण की महिमा श्रवण करवाई एवं हमें किस प्रकार से शिव पुराण की कथा सुनाई जाती हैं, और शिव पुराण की कथा सुनने का क्या फल मिलता हैं| बाबा भोलेनाथ का वर्णन किया की भगवान शिव को अवघड़दानी कहा जाता है, जिस भक्तों की मनोकामना जो होती हैं, हम सभी के आराध्य भगवान शिव पूर्ण करने वाले हैं| इसलिए किस प्रकार से भगवान शिव को हम प्रसन्न करें, इसके विषय में आज की कथा में नयन महाराज जी ने श्रोताओं को श्रवण करवाई और बताया की जहां सभी देवताओं की मूर्ति होती है, वही भगवान शिव की मूर्ति तथा शिवलिंग दोनों ही रूपों में क्यों पूजे जाते हैं| इसका बृहद वर्णन पूज्य महाराज जी ने किया और बताया कि शिव का अर्थ होता है कल्याण अर्थात जब कोई व्यक्ति समाज के कल्याण के लिए कार्य करता है तो वह वास्तविकता में भगवान शिव की ही सेवा करता है| दीन दुखियों की सेवा करना भी भगवान शिव की ही सेवा करना है, इसीलिए संपूर्ण जगत में भगवान शिव को देखें और जीव मात्र की सेवा में अपना योगदान दें, सर्वे भवंतु सुखना यही वास्तविक शिव पूजा ही मानी जाती हैं|
शिव पुराण मानव प्रकृति को चेतना के चरम तक ले जाने का सर्वोच्च विज्ञान है, जिसे बहुत सुंदर कहानियों द्वारा किया बताया जाये है| योग को एक विज्ञान के रूप में भी व्यक्त किया गया है, जिसमें कहानियां नहीं हैं, लेकिन अगर आप गहन अर्थों में उस पर ध्यान दें, तो योग और शिव पुराण को अलग नहीं किया जा सकता| एक उनके लिए है, जो कहानियां पसंद करते हैं तो दूसरा उनके लिए है, जो हर चीज को विज्ञान की नजर से देखना पसंद करते हैं, मगर दोनों के लिए मूलभूत तत्व एक ही हैं| कथा के आगे नयन महराज जी ने कहा कि महादेव का पूजन कभी भी किया जा सकता हैं, लेकिन एक समय पंडित जी द्वारा बनाया गया है प्रातः काल से रात्रि10 बजे तक कहा जाता है| भगवान शंकर जी को कभी भी सच्चे मन से जल चढ़ाया जा सकता हैं, प्रभु उसे ग्रहण करके अपने भक्तों के भक्ति भाव के अनुसार उनको हर कार्य पूर्ण कर देते हैं| आगे की कथा में कहते हैं कि सुत कौन है, सुत का वर्णन बताया की, सुत के पिता ब्राह्मण व माता छत्रीय है| महाराज जी कहते हैं कि यहा सुत का जन्म ब्रम्हा ब्राह्मण और इन्द्र छत्रीय इन्हीं के मंत्र के उच्चारण से कुण्ड के द्वारा सुत का जन्म हुआ| यह प्रभु की लिलाओ द्वारा इस चरित्र का निर्माण हुआ, कथा के कहा गया है कि जो भक्त जिस भाव से देखेगा या सोचेगा उसको उसी तरह से दिखाई देगा|