सदा-ए-मोबीन 🌹✍️ प्रबुद्ध वर्ग और आम जनता..
उ.प्र. में कुछ पार्टियां प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन कर रही हैं अगर ये 8% लोग प्रबुद्ध हैं तो क्या 92% लोग बुद्धिहीन हैं? जो आपको वोट दें और जिंदाबाद जिंदाबाद करें!
चुनाव करीब आते ही अटाइं सटाइं वादे होने लगे!
जो रोजगार पा गए हैं उनके स्थाई करने की बातें, पेंशन बहाल करने की बातें, उनकी सुविधाओं के लिए वादे…! उनको कर्तव्यनिष्ठ बनाने पर जोर नहीं, उन्हें भ्रष्टाचार मुक्त होने की कड़ाई नहीं..!
जो बेरोजगार हैं उनके लिए क्या?.. भर्ती के लिए ₹125 से ₹800 तक फीस लेकर सिर्फ फार्म भरवाना, परीक्षा के लिए वर्षों इंतजार, घर से 300 किलोमीटर तक दूर परीक्षा केंद्र, फिर पेपर लीक, कोर्ट केस,.. ऐसी एजेंसी को ठेका जो सिलेबस से हटकर ऐसे प्रश्न पूछे जिनका उत्तर गूगल भाई भी न दे सकें…, ग्रामीण छात्रों के लिए ऑनलाइन परीक्षा एक बाधा!
बेरोजगारी में कैसे फीस दी जाती है, कैसे किताबें खरीदी जाती हैं, कंपटीशन इतना बढ़ गया है इसलिए शहर में कैसे कमरा मिलता है, मनमाना किराया लेने के लिए मकान मालिकों पर शक्ति क्यों नहीं? परेशान छात्रों के लिए कोई वादा क्यों नहीं?
पूरी जवानी आशा और संघर्ष में ही गुजर जाती है, क्या इन प्रतियोगी छात्रों के लिए भी कोई वादा होगा? क्या इनकी भी मुश्किलें आसान की जाएंगी? क्या स्कूलों, कॉलेजों व विश्वविद्यालयों को मनमानी फीस वसूलने पर भी कोई बात करेगा?
क्या थाना, ब्लाक, तहसील और जिला में व्याप्त भ्रष्टाचार और अस्पतालों की अव्यवस्था व लूट पर भी किसी की नजर जाएगी?
मुझे लगता है नहीं, क्योंकि इनमें दिक्कतों का सामना कर लूटे जाने वाले बेरोजगार गरीब किसान मजदूर और छोटे व्यापारी हैं!… प्रबुद्ध वर्ग नहीं, उसका काम तो पीछे से चल जाता है, आगे आते हैं तो कुर्सी मिलती है और चाय भी! और आम गरीब जनता को क्या साहब की डांट फिर खर्चा देने की बात!
आखिर ये 92% लोग क्यों नहीं सोचते? वोट देते वक्त पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक या हिंदू मुसलमान क्यों बन जाते हैं?
जबकि इनका समुदाय सिर्फ एक है गरीब बेरोजगार किसान मजदूर और छोटे व्यापारी!
इनकी पीड़ा एक है, इनकी मुश्किल एक है, वोट पड़ने के बाद ये सब एक ही लाइन में खड़े होते हैं और एक होने का सबूत भी देते हैं! लेकिन वोट डालने वाली लाइन में खड़े होने पर किस के बकाए में जाति और धर्म में बंट जाते हैं, सिर्फ एक घंटा मानसिक व भावनात्मक खुशी के चक्कर में 5 वर्ष के लिए शारीरिक, मानसिक व आर्थिक मुश्किल मोल ले लेते हैं!
आखिर कब तक ऐसा करते रहेंगे और ठगे जाते रहेंगे?
जिनके वादे देख चुके हो, जिन्हें आजमा चुके हो उन्हें अब मुंह तोड़ जवाब दो… अपने बीच से नेता पैदा करो और सत्ता पर कब्जा करो! वरना शिकारी ऐसे ही एक आदमी को लालच देकर उनके ही लोगों का शिकार करवाते रहेंगे! व्यक्तिगत स्वार्थ व लालच से बचकर वास्तविक समाजवादी बनने की जरूरत है!… दरवाजे पर समाजवाद का बोर्ड लगा कर घर के अंदर सिर्फ अपने ही भाई भतीजे को मलाई खिलाने से कोई समाजवादी नहीं बन जाता… अपने ही भाई भतीजे और बेटे को स्थापित करने वालों को बहुजन वादी या समाजवादी तो नहीं कहा जा सकता! समाजवाद के रास्ते पर चलना तो अपने आप में एक तपस्या है और यह तपस्या कोई साधारण व्यक्ति नहीं कर सकता उसके लिए असाधारण प्रतिभा की जरूरत होती है… जिसका उदाहरण हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, सर सैयद अहमद खान जैसे महापुरुष हैं जिन्होंने अपना जीवन तो फकीराना अंदाज में गुजारा लेकिन समाज के भविष्य के लिए एक सुनहरा मार्ग तैयार किया!
चुनाव आयोग में रजिस्टर्ड सभी राजनीतिक दलों या आपके राज्य में चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों के शीर्ष नेताओं का व्यक्तित्व देखें, कौन ऐसा नेता है जिसका जीवन सादगी और ईमानदारी से भरा है, शायद वही समाजवादी होगा, हमें उसके साथ ही चलने की जरूरत है, वही हमारी उपरोक्त समस्याओं का निवारण भी कर सकेगा! अगर झांसे में आकर बंटोगे, तो ठगे जाओगे 5 वर्ष पछताने के सिवा कुछ नहीं मिलेगा!
—- लेखक मोबीन गाज़ी कस्तवी
92% जनता के बीच का छोटा कार्यकर्ता
9455205870