सदा-ए-मोबीन ❤️✍️ शिक्षा या व्यवसाय
भारत में पुराने समय में शिक्षा का तरीका काफी अच्छा था तब गुरुकुल, आश्रम, मदरसा आदि में भाषा, कौशल, संस्कार और व्यवहार आदि की नैतिक शिक्षा दी जाती थी!
आज के दौर में शिक्षा सिर्फ व्यवसाय बनती जा रही है, गली-गली में कान्वेंट स्कूल खुल गए हैं और हर शहर में इंजीनियरिंग कॉलेज!
जहां पढ़ने के लिए मोटी फीस ड्रेस जूता बैग के साथ गाड़ी की जरूरत होती है!

भ्रष्टाचार आदि माध्यम से धन कमा कर लोग स्कूल रूपी व्यवसाय का चोला ओढ़ कर खुद को शिक्षाविद या समाज सेवक के रूप में परिवर्तित कर लेते हैं! किसी गरीब बच्चे को वहां दाखिला नहीं मिलता!

पढ़ाने के लिए जिन महिला व अध्यापकों की जरूरत होती है उनकी योग्यता बाद में पहले रंग, पहनावा, कद और स्टाइल देखी जाती है कि ये बच्चों और अभिभावकों को आकर्षित कर पाएगी या नहीं!

बाप स्कूल का प्रबंधक होता है, बेटा/ बेटी प्रिंसिपल भतीजा बाबू उसके बाद इन स्टाइलिश किंतु मस्तिष्क से खाली चापलूसी में नंबर वन लोगों को पढ़ाने के लिए भर्ती किया जाता है!

” सरस्वती रमेश जी कहती हैं मैंने एक स्कूल में पढ़ाने के लिए आवेदन किया, एक माह बाद मुझे फोन करके बुलाया गया प्रबंधक जी ने इंटरव्यू लिया उनकी बेटी प्रिंसिपल थी मैंने उनके सारे सवालों के जवाब दे दिए, उन्होंने कहा आप कंपीटेंट हैं, लेकिन आपको अन्य टीचरों से सैलरी कम दी जाएगी मैंने पूछा क्यों उन्होंने कहा आप का रंग काला है, अच्छे चेहरे वाले टीचरों से बच्चों के अभिभावक ज्यादा इंप्रेस होते हैं, मैं दुखी हुई लेकिन मुझे पैसों की जरूरत थी इसलिए पढ़ाना शुरू कर दिया मैंने देखा वहां पढ़ाने वाले अध्यापकों की वर्तनी तक शुद्ध नहीं थी, मेरे दिल दिमाग में जरूरत और जमीर का द्वंद चलता रहा, 1 सप्ताह बाद मैंने स्कूल जाना बंद कर दिया प्रबंधक का फोन आया कहने लगे आपकी सैलरी बराबर कर दी जाएगी आप अच्छा पढ़ाती हैं मैंने कहा मेरा रंग काला है इसलिए मैं आप के प्रतिष्ठित स्कूल के योग्य नहीं! कितने अफसोस की बात है जहां बच्चों का भविष्य गोरी मगर अयोग्य टीचर्स के हाथ में था!” (सादर nbt)
आजकल दो तरह की शिक्षा व्यवस्था लागू है एक सरकारी स्कूल जहां गरीब, मजदूर, किसान और छोटे व्यापारियों के बच्चे पढ़ते हैं! दूसरी जहां अमीर, अधिकारी/ कर्मचारी और बड़े व्यापारियों के बच्चे पढ़ते हैं!
सरकारी स्कूल में अध्यापक तो योग्य होते हैं लेकिन वह मेहनत से पढ़ाते नहीं हैं! बच्चे जब प्राइवेट स्कूलों के सूट बूट और अच्छे बस्ते के साथ गाड़ी में आते जाते बच्चों को देखते हैं तो खुद को कमतर महसूस करते हैं, उनका आत्मविश्वास कम हो जाता है! अध्यापक भी मिड डे मील, ड्रेस आदि के घोटाले में लगे रहते हैं बच्चों को सुधारते नहीं!

जहां इस तरह की दोहरी व्यवस्था हो वहां समानता की बात करना बेईमानी है!
जो लड़का कभी भी सरकार द्वारा आयोजित परीक्षा पास करके कोई स्कूल नहीं पाता या परीक्षा में ऋणात्मक अंक पाता है, 4 साल बाद किसी प्राइवेट स्कूल से 80% अंकों के साथ बीटेक कैसे पास हो जाता है?
जो लड़का बीएससी में पर्यावरण तक के वैकल्पिक पेपर में भी फेल हो जाता है वह 2 साल बाद किसी प्राइवेट कॉलेज से पॉलिटेक्निक करके खुद को इंजीनियर कहने लगता है!
जो लड़का 5 साल नीट की तैयारी करने के बाद भी कोई कॉलेज नहीं पाता या परीक्षा नहीं पास कर पाता वह किसी प्राइवेट कॉलेज से एमबीबीएस कैसे पास कर लेता है?… ऐसे डॉक्टरों से होशियार रहने की जरूरत है, न मर्ज रहेगी न मरीज!
इससे पता ये चलता है निजी विश्वविद्यालय, कॉलेज और स्कूल पैसा कमाने के लिए शिक्षा संस्थान रूपी फैक्ट्री को ले बैठे हैं! हालांकि कुछ अच्छे भी हैं लेकिन उनमें गरीब का बच्चा नहीं पढ़ पाता!.. 90% इंजीनियर ऐसे हैं जिन्हें कोई व्यवहारिक ज्ञान नहीं!
सरकारी संस्थानों का स्टाफ लापरवाही करता है इसलिए उनका परिणाम अच्छा नहीं रहता!

गर्भ से 5 वर्ष तक बच्चों के पोषण, स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए आंगनबाड़ी, आशाबहुएं आदि की व्यवस्था की गई है!
बच्चों के लिए आने वाला पोषण बेच लिया जाता है जिन्हें जानवर खाते हैं, कभी नियमित केंद्र संचालन नहीं होता, एक अक्षर भी पढ़ाया नहीं जाता, कुछ कार्यकत्रियों को हिंदी लिखना ही नहीं आता, बस महीने भर सेतुआ बेचकर जेब भरना और बोरी की कीमत ₹240 याद रहती है, पैसे गिनने की अक्ल है,अगर 5 रु भी कम हुए तो बोरी नहीं देगी!
बच्चों का हक मारना सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है इन्हें ईश्वर भी माफ नहीं करेगा!
आशाबहुएं प्राइवेट अस्पतालों, जांच केंद्रों से सांठगांठ करके महिलाओं को वहीं ले जा कर रख देती हैं जहां उनका कमीशन बंधा है! चिकित्सा, शिक्षा हर क्षेत्र में व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार हो रहा है!
“मैं खुद उ०प्र०पु० दरोगा भर्ती की तैयारी के लिए एक कोचिंग संस्थान में गया जहां कंधे तक बाल फैलाए एक लड़की बैठी थी बातचीत के बाद मेरा नाम रजिस्टर पर लिखते समय उसने 3 गलतियां की… मैं समझ गया इसे यहां क्यों बैठाया गया है!”

इस व्यवसाय परक शिक्षा से बाहर निकलकर संस्कार युक्त शिक्षा की ओर ध्यान देना चाहिए!
क्योंकि इन स्कूलों में पढ़े बच्चे स्वार्थी, लालची, धोखेबाज और पैसे के लिए कुछ भी करने वाले होते हैं! क्योंकि इनकी शुरुआत ही व्यवसाय से हुई है!

सरकार को चाहिए सभी स्कूलों की ड्रेस किताबें व फीस एक जैसी करे!

जब तक शिक्षा व्यवस्था में सुधार करके संस्कार युक्त नहीं बनाई जाएगी, एक सभ्य और ईमानदार समाज की कल्पना करना बेईमानी है!

लेखक— भाई/दोस्त मोबीन गाज़ी कस्तवी
9455205870

By admin_kamish

बहुआयामी राजनीतिक पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You missed