सदा-ए-मोबीन ❤️✍️ नेता कैसा हो
भारत की लगभग 73% आबादी ग्रामीण क्षेत्र में निवास करती है! गांव के लगभग 99% परिवार खेती (फसल, दूध, सब्जी, फूल, भैंस, बकरी आदि का काम) मजदूरी, छोटे व्यापारी (फेरीवाले, ठेले पर मूंगफली आदि बेचना, मिट्टी के बर्तन आदि का काम) आदि से जुड़े हैं!
जो 27% शहरी आबादी है उसमें भी 10% लोग गरीब, झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले, मजदूर और छोटे व्यापारी हैं!
इन गरीब ,मजदूर,किसानों व छोटे व्यापारियों के बच्चे बचपन से ही मां-बाप के काम में हाथ बटाते हैं! घर, कपड़ा और रोटी के लिए संघर्ष करते हैं! मुश्किल से सरकारी स्कूल में पढ़ पाते हैं! ये बच्चे स्कूल में अध्यापकों के व्यवहार, सरकारी अस्पताल के हालात, थाना, ब्लाक, कोर्ट कचहरी, गांव की पंचायत के साथ अनाज बेचने जाने पर बड़े व्यापारियों के मिजाज से बखूबी वाकिफ होते हैं!
जब बाप के पास पैसा नहीं होता है तो वह गांव के लोगों से कैसे कर्ज लेता है, मां अपने जेवर बेचकर कैसे घर के खर्चे चलाती है, बहन की शादी पर कितने रिश्तेदारों से पैसा उधार लेना पड़ता है आदि!
ये गरीब किसान मजदूर और छोटे व्यापारियों का बच्चा संघर्षों के बीच जीवन जीते हुए जब बड़ा होता है तो हालात बदलने की सोचता है, जिनके अंदर सिर्फ अपने ही हालात बदलने की सोच रहती है वह कुछ सिर्फ अपने लिए करते हैं और अपना जीवन स्तर सुधार लेते हैं! लेकिन जिनके सीने में पूरी व्यवस्था को परिवर्तित करा कर समाज के हर व्यक्ति के जीवन स्तर को सुधारने की आग जलती है, वो परिवर्तन की आवाज उठाता है ….फिर नौकरी नहीं तलाश करता.., आंदोलन करता है, संगठन बनाता है!
यह जमीनी आदमी जब नेता बनता है तो संसद में आम जनमानस की आवाज उठाता है, इसने बेरोजगारी का दंश झेला है, इसने गरीबी को जिया है, इसने भ्रष्टाचार को अपनी आंखों से देखा है, इसने किसानों के दर्द को झेला है, इसलिए इसकी आग संसद में भी ठंडी नहीं होती और समाज के लिए कुछ न कुछ करने को ही सोचता है,… क्योंकि यह तो सदा रूखा सूखा खाकर जमीन पर ही सोया है, इसलिए गाड़ी बंगला के चक्कर में नहीं पड़ता!
इसे ट्रेन बस आदि के सफर का बखूबी ज्ञान है इसलिए इसमें सुधार की सोचता है!

यह विडंबना की बात है आज हम उसे नेता कहते हैं या बनाते हैं जो विदेश में पढ़ा है, ऐश ओ आराम की जिंदगी जी, जिसने गरीबी सिर्फ किताबों में पढ़ी है, जो किसानी को सिर्फ सुनता है, जो पैसेंजर गाड़ी का सिर्फ नाम जानता है, जो बेरोजगारी शब्द से ही वाकिफ है…. बताओ क्या किसान, मजदूर और बेरोजगारों के प्रति उसकी संवेदनाएं सच्ची हो सकती हैं!
जब उसे जमीनी हकीकत मालूम ही नहीं, किसी दर्द का व्यावहारिक ज्ञान ही नहीं तो क्या वह हमारे दर्द को वास्तव में महसूस कर पाएगा! वह तो विदेश में पढ़ कर आया है, उसके बच्चे भी विदेश में पढ़ेंगे! हमारे साथ सिर्फ फोटो खिंचा कर हमें बेवकूफ बनाता रहेगा!
उसे क्या मालूम धान लगाना कितना कठिन है, गन्ना छीलने में क्या दर्द होता है, बेरोजगार आदमी शहर में नौकरी के लिए कैसे रहता है!

समाज एक गलत दिशा में जा रहा है वह चुनाव के समय नेता की गाड़ियों की संख्या देखता है, उसके कपड़े देखता है, उसके साथ खरीदे हुए लोगों की भीड़ देखता है, उसकी प्रॉपर्टी देखता है, उसकी पार्टी देखता है, फिर देखता है कौन हमारी भावनाओं से खेलने के लिए जाति धर्म आदि का सहारा लेता है, भावनाओं में बहते समय मस्तिष्क शून्य हो जाता है, उसे सिर्फ भौकाल और भीड़ ही दिखाई पड़ती है वह भी उसी के साथ चल पड़ता है, वोट डालने वाली लाइन में उसे समोसे से भी मिलते हैं, पैसे भी, नेता जी भी हाथ जोड़े अपनी गाड़ी लिए खड़े मिलते हैं… वोट डालते वक्त जब मशीन की सीटी बजती है, वह कमरे में अकेला होता है, उसका दिमाग काम करना शुरू कर देता है जैसे ही वह बाहर निकलता है अब उसके पास कोई नहीं आता वह नेता जी को नमस्ते करता है कहता है मुझे घर तक छुड़वा दो नेता जी कहते हैं अरे चले जाओ यार मुझे अभी और लोगों को लाना है! फिर वह बेचारा 5 साल पछताता है… नेताजी सिर्फ अखबार या टीवी में दिखते हैं या कभी-कभी रोड पर तेज रफ्तार गाड़ी में जाते हुए!… वह अपने साथियों के साथ रोजमर्रा के काम करता है….. जैसे ही फिर चुनाव करीब आते हैं लोग भेष बदल बदल कर आ जाते हैं यह भोला-भाला आदमी फिर भावनाओं में बहने लगता है उन्ही 5 नेताओं के चक्कर में जिंदगी भर ठोकर खाता है!
याद रखें जिस पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष इन पैमानों पर खरा न उतरे उससे दूर रहना है यानी वह जमीन से संघर्ष करके आया हो विरासती सुल्तान न हो!

लोकपाल के लिए खूब आंदोलन हुआ था, क्या भ्रष्टाचार खत्म हो गया? अब कहां है वो आंदोलनकारी?
कुछ महीनों से किसानों के लिए आंदोलन हो रहा है, क्या किसान इसके पहले मुनाफे में था? उसके सामने समस्याएं नहीं थी, आज जो किसानों के नेता बन रहे हैं क्या उन्होंने कभी हल चलाया है? खेतों में 12 घंटे काम करने का व्यवहारिक ज्ञान रखते हैं!… मजे की बात इसमें से कई ने तो कानून आने पर स्वागत किया था फिर जब कुछ नेता आंदोलन करने लगे तो वह सीधे रोने लगे ताकि हम कुछ नया करके भोले-भाले किसानों को अपना नेता मनवाने में कामयाब हो जाएं!…. मुझे लगता है वह सिर्फ अपनी राजनीतिक रोटियां किसानों की भावनात्मक आग से सेकने आए हैं! चुनाव के बाद खुद मंत्री की कुर्सी पे या AC कमरे में सोएंगे, किसान बेचारा खेतों में!

हमें चाहिए हम नेता अपने बीच से चुने, जो हमारे दर्द को जी चुका हो,.. यहां पर विवेक की जरूरत है, स्थिरता की जरूरत है, धैर्य की जरूरत है, संकल्प की जरूरत है, उसके पास पैसा नहीं होगा, गाड़ी नहीं होगी, भीड़ नहीं होगी, लेकिन वह तुम्हारा हमदर्द होगा, ईमानदार और सच्चा होगा,… उसने राजनीति को सिर्फ तुम्हारे हालात बदलने के लिए चुना है व्यवसाय के लिए नहीं!
— लेखक— आपका भाई/दोस्त मोबीन गाज़ी कस्तवी
(सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन की सोच पाले एक छोटा सा कार्यकर्ता)
9455205870

By admin_kamish

बहुआयामी राजनीतिक पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष

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