लखनऊ। प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों के शिक्षामित्रों की तरह अब अनुदेशकों को भी मानदेय में वृद्धि की आस जगी है। महज 9,000 रुपये प्रतिमाह पाकर नौनिहालों का भविष्य संवारने में जुटे अनुदेशक सरकार से आस लगाए हुए हैं कि कमेटी बनाकर उनकी भी आर्थिक समस्याएं दूर की जाएंगी।

वर्ष 2013 में उच्च प्राथमिक विद्यालयों में विषय विशेषज्ञ के रूप में अनुदेशक नियुक्त किए गए थे। वर्ष 2016 में राज्य सरकार ने मानदेय सात हजार से बढ़ाकर 8,470 रुपये कर दिया था। बाद में 2017 में फिर से मानदेय में कटौती करते हुए सात हजार रुपये कर दिया गया। जबकि वर्ष 2017 में प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड (पीएबी) ने अनुदेशकों के मानदेय में वृद्धि करके 17 हजार किया था। लेकिन राज्य सरकार ने इसपर ध्यान नहीं दिया। जिसके चलते अनुदेशकों ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।जिसपर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आर्थिक तंगी से जूझ रहे अनुदेशकों के पक्ष में निर्णय लेते हुए 17 हजार मानदेय देने का आदेश दिया था। लेकिन इसपर भी शासन की तरफ से कोई कदम नहीं उठाया गया। स्थिति जस की तस बनी हुई है।  अनुदेशक  आज भी घर से 50 से 70 किलोमीटर दूर जाकर विद्यालय में पढ़ा रहे हैं।इसके बदले उन्हें महज 9,000 के मानदेय में जीवन यापन करना पड़ रहा है। एक तरफ जहां शिक्षामित्रों को लेकर न्यायालय ने मानदेय बढ़ाने के लिए कमेटी गठित करने के निर्देश दिए हैं तो अनुदेशक भी सरकार से कुछ ऐसी ही उम्मीद लगाए हुए हैं।

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