संवाददाता:- मोहम्मद फैज़ान,

शेरकोट (बिजनौर)प्रेस को जारी अपने संयुक्त बयान में डॉ फसीहउल्लाह अब्बासी वे डॉ सय्यद ज़ेगम अली ज़ैदी एवं मो सज्जाद सिद्दीकी ने महान शायर मुनव्वर राना के निधन पर अपने गहरे रंजो गम का इज़हार करते हुए उनकी मगफिरत और जन्नतुल फिरदौस के लिए दुआ की है और उनके घर वालों को सब्र की तलाकिन की है। डॉ फसीउल्लाह ने कहा कि हमसे उर्दू अदब का एक दरख्शं सितारा जुदा हो गया मुनव्वर राना लंबे समय तक याद किए जाते रहेंगे और उनके अशआर भी राहत इंदौरी की तरह लोकसभा राज्यसभा और विधानसभा में कोड किए जाते रहेंगे। डॉ फसीउल्लाह ने कहा की शायर मुनव्वर राना ने नजीर अकबराबादी और दुष्यंत कुमार की तरह अपनी शायरी की है उनकी शायरी अवाम के जज़्बात वह ऐहसासात की तर्जुमान है उनकी शायरी समाज की आइना दार अथवा समाज का दर्पण है। उन्होंने अपनी शायरी आम आदमी की जबान में की है उन्होंने सादा अल्फ़ाज़ में अच्छा गहरा मजमून व माफहुम पेश किया है उन्होंने अपनी शायरी में कठिन शब्दों से गुरेज किया है फारसी और अरबी शब्दों का बहुत कम प्रयोग किया है लेकिन अपनी गजको और नज्मों में जानदार और शानदार मजमून पेश किए हैं उन्होंने विभिन्न विषयों पर शायरी की और गज़ल को महबूब के जुल्फ और रुखसार से निकाल कर गज़ल का क्षेत्र बढ़ाया उन्होंने देश प्रेम पर भी शेयर लिखें उनके कुछ पसंदीदा अशआर पेश खिदमत है। सो जाते हैं फुटपाथ पे अखबार बिछा के- मजदूर कभी नींद की गोली नहीं खाते। ना जन्नत मैंने देखी है ना जन्नत की त्वक्को है- मगर मैं ख्वाब में इस मुल्क का नक्शा बनाता हूं। मुझे अपनी वफादारी पे कोई शक नहीं होता- मैं खुने दिल मिला देता हूं जब झंडा बनाता हूं। शहीदों की ज़मी है इसको हिंदुस्तान कहते हैं- यह बंजर होके भी बुजदिल कभी पैदा नहीं करती। शगुफ्ता लोग भी टूटे हुए होते हैं अंदर से- बहुत रोते हैं वह जिनको लतीफे याद रहते हैं। खुदा ने यह सिफत दुनिया की हर औरत को बक्शी है- वह पागल भी हो जाए तो बेटे याद रहते हैं। हमारे और उनके बीच एक धागे का रिश्ता है- हमें लेकिन हमेशा व सगा भाई समझती है। लिपट जाता हूं मां से और मौसी मुस्कुराती है- मैं उर्दू में गजल कहता हूं हिंदी मुस्कुराती है।

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