धर्मेन्द्र कसौधन(ब्यूरो हेड उत्तर प्रदेश):महाराजगंज जिले में कुछ निजी स्कूलों में एनसीइआरटी की किताबों से ज्यादा प्राइवेट पब्लिकेशन की किताबों पर जोर दिया जाता है। सबसे बड़ी विडंबना तो यह भी है कि ये किताबें उन्हीं दुकानों के पास मिलती हैं। जो स्कूल तय करता है। गलती से आप किसी और प्रकाशन की वही किताब या मिलते- जुलते पाठयक्रम की अन्य किताब ले आए तो उसे अस्वीकार कर दिया जाता है। हर साल किताबों के खर्च में भी 30 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हो जाती है और इस कमाई का बड़ा हिस्सा संबंधित स्कूलों में बतौर कमीशन भी पहुंचाया जाता है। इसके अलावा स्कूल की ओर से बताए गए दुकानदारों के पास किताबों के लिए गए पूरे दामों का पक्का बिल भी देने से बचते हैं। दुकानदारों की ओर से प्रिंट रेट पर किताबें बेची जा रही हैं। कुल मिलाकर निजी विद्यालयों के संचालक अभिभावकों को लूट रहे हैं। बच्चों के भविष्य के आगे मजबूर अभिभावक शिकायत करने से भी डरते हैं।

दोहरी मार झेल रहे अभिभावक
जिल मे दर्जनभर से ज्यादा आइसीएसइ, आइएससी व सीबीएसइ औऱ यू पी बोर्ड के स्कूल हैं। इनमें एनसीईआरटी की किताबें पढ़ाए जाने के निर्देश हैं। प्रबंधन निजी प्रकाशकों की महंगी किताबें पढ़ा रहे हैं। वे हर साल किताब बदल देते हैं। पालकों पर दोहरी आर्थिक मार पड़ती है।

एनसीइआरटी से नहीं मिलता है कमीशन
एनसीईआरटी की किताबों को निजी विद्यालय इसलिए दरकिनार करते हैं क्योंकि उसमें उनको कोई कमीशन नहीं मिलता है। बुक डिपो की ओर से थोक विक्रेता यानी एजेंट को मूल्य में 20 फीसदी की छूट के साथ किताबें उपलब्ध होती हैं और नियमानुसार थोक विक्रेता को 15 प्रतिशत की छूट के साथ किताबें फुटकर विक्रेताओं को उपलब्ध कराना पड़ता है।

ऐसे समझें कमीशन का खेल
दरअसल निजी स्कूलों में 40 प्रतिशत तक कमीशन प्राइवेट पब्लिकेशन की किताबों का है। पुस्तक विक्रेता को 10 से 15 प्रतिशत कमीशन मिलता है और बाकी पब्लिकेशन के पास जाता है। यानी छात्र 100 रुपए की किताब खरीदता है तो 40 रुपए स्कूल को, 10 से 15 रुपए बुकसेलर को और 45 से 50 रुपए पब्लिकेशन को जाता है। हालांकि सभी निजी स्कूलों में नियमों को दरकिनार कर दिया गया है।

@धर्मेन्द्र कसौधन(ब्यूरो चीफ़ उत्तर प्रदेश)

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