हिन्दी राष्ट्रवादी कविता और सांस्कृतिक चेतना पर विचार-विमर्श संगोष्ठी।
रोहित सेठ
‘वाराणसी
हिन्दी राष्ट्रवादी कवियों की साहित्यिक-सामाजिक विरासत: सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के सन्दर्भ में’ विषयक संगोष्ठी के दूसरे दिन के प्रतिभागी सत्र की अध्यक्षता प्रो० विजय कुमार शाण्डिल्य ने की। उन्होंने अपने वक्तव्य में मानस के मंगलाचरण के माध्यम से तुलसी की राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना को रेखांकित किया। विशाखापट्टनम से आयीं प्रो० जे विजया भारती ने उत्तर-दक्षिण के भाषायी सौहार्द पर समुचित टिप्पणी की, साथ ही शोधपत्रों पर अपनी संक्षिप्त समीक्षात्मक टिप्पणियाँ प्रस्तुत कीं। प्रो० संतोष कुमार सिंह ने सुमधुर गीत प्रस्तुत करते हुए शोधपत्र वाचन करने वाले प्रतिभागियों की सराहना की। डॉ० किंगसन सिंह पटेल ने स्त्रीवादी दृष्टि से राष्ट्रवादी कविता में महिलाओं के योगदान पर प्रकाश डाला। डॉ० अनुराधा शुक्ला ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के तत्त्वों को रेखांकित करते हुए आधुनिक हिन्दी कविता की पंक्तियों के माध्यम से अपनी बात स्पष्ट की। तथा रायबरेली से आये श्री अवधेश शर्मा ने राष्ट्रवाद शब्द की अवधारणा स्पष्ट की तथा अपने सुमधुर कण्ठ से कविताओं का पाठ कर राष्ट्रवादी कवियों को स्मरण किया। इस सत्र में देश भर के विभिन्न विश्वविद्यालयों से आये हुए शोधार्थियों ने अपना शोधपत्रों का वाचन किया।
सत्र का संचालन अजीत प्रताप सिंह ने व धन्यवाद ज्ञापन सर्वेश मिश्र ने किया।
तृतीय अकादमिक सत्र― ‘राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा: विविध स्वर’ विषय पर केन्द्रित रहा। सत्र की अध्यक्षता प्रो० विनय कुमार सिंह ने की। विषय पर बोलते हुए डॉ० सुशील यादव ने भारत-भारती, पुष्प की अभिलाषा जैसी कविताओं के माध्यम से राष्ट्रवादी कविता का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय आन्दोलन में त्याग और बलिदान करने वालों के लिए ही दिनकर ने कहा है ‘कलम आज उनकी जय बोल’। उन्होंने राष्ट्रवादी कविताओं का सुमधुर पाठ भी किया।
डॉ० सूर्यप्रकाश पारिक ने सिनेमा के सापेक्ष साहित्य-समाज के सम्बन्ध की चर्चा की। ।
डॉ० राजीव रंजन प्रसाद ने ‘हिन्दी राष्ट्रवादी कवियों की साहित्यिक समाजिक विरासत’, अ-हिन्दी भाषी पूर्वोत्तर व काशी के सम्बन्ध को रेखांकित किया। डॉ० राजीव रंजन ने पत्रकारिता और राष्ट्रवादी कविता के परस्पर सम्बन्धों को स्पष्ट करते हुए आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के योगदान की चर्चा की।
इस सत्र का संचालन डॉ० अशोक कुमार ज्योति ने और धन्यवाद ज्ञान डॉ० रविशंकर सोनकर ने किया।चतुर्थ अकदामिक सत्र का विषय रहा―’हिन्दी राष्ट्रवादी कविता: भारतीय जीवनदृष्टि और युगबोध’ । सत्र की अध्यक्षता प्रो० वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी ने की।
डॉ० शुभांगी श्रीवास्तव ने देशभक्ति और राष्ट्रवाद के अन्तर को स्पष्ट करते हुए रवीन्द्रनाथ ठाकुर के राष्ट्रवादी विचारों का परिचय दिया। प्रो० सत्यपाल शर्मा ने भारतीय और पाश्चात्य राष्ट्रवाद के बीच अन्तर को रेखांकित किया। उन्होंने कहा अनादि काल से विकसित होता आ रहा भारतीय राष्ट्रवाद साहचर्य केन्द्रित रहा है। भारतीय राष्ट्रवाद संस्कृति केन्द्रित है जबकि पाश्चात्य राष्ट्रवाद राजनीति केन्द्रित है जिसकी परिणति विस्तारवाद और साम्राज्यवाद में होती है। भारतीय राष्ट्रवाद कभी भी विस्तारवादी नहीं रहा है। ।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो० वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी ने सभी वक्ताओं के वक्तव्यों पर समीक्षात्मक टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि यूँ तो वैदिक काल से लेकर, आदिकाल, भक्तिकाल और रीतिकाल में भी राष्ट्रीय चेतना देखने को मिल जाती है। लेकिन जिस राष्ट्रवादी काव्य पर हम चर्चा कर रहे वह भारतेन्दु से आधुनिक काल में ही शुरू हुआ। उन्होंने इसपर ज़ोर दिया कि भारतीय राष्ट्रवाद सिर्फ़ राजनीतिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक भी है।
सत्र का संचालन डॉ० विन्ध्याचल यादव ने व धन्यवाद ज्ञापन डॉ० राजकुमार मीणा ने किया।
समापन सत्र―
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो० वशिष्ठ द्विवेदी ने समापन सत्र में स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। उन्होंने संगोष्ठी की सफलता के लिए आयोजकों की सरहाना करते हुए कहा कि राष्ट्रवादी काव्यधारा के अचर्चित कवियों की भी चर्चा होना इसकी उपलब्धि रही।
मुख्य अतिथि, उत्तर प्रदेश राजर्षि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो० सत्यकाम ने दीनदयाल उपाध्याय के सन्दर्भ से इस पर ज़ोर दिया कि, 'यह आवश्यक है कि हम अपनी राष्ट्रीय पहचान के बारे में सोचें, इसके बिना स्वतन्त्रता का कोई महत्त्व नहीं है।' उन्होंने कहा कि राष्ट्रवादी कविता को वीर रस, ओज और जोश के भाव तक सीमित कर देना एक रूढ़ि है। उन्होंने निराला की 'तोड़ती पत्थर' और केदारनाथ सिंह की 'बनारस' कविता के माध्यम से कहा कि जो भी कविता देश के साझा मूल्यों को साम्बोधित करती है वह राष्ट्रवादी कविता है। प्रो० सत्यकाम ने कहा कि धर्म भारत को एकसूत्र में जोड़ता है।
कार्यक्रम के समाप्ति पर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति जस्टिस गिरिधर मालवीय के निधन उपरांत सभी ने मौन धारण कर श्रद्धांजलि दी गयी