गीता केवल ग्रंथ नहीं, जीवन दर्शन है-- कुलपति प्रो शर्मा।

रोहित सेठ

वाराणसी गीता जयन्ती का पावन पर्व न केवल भारतीय संस्कृति का गौरव है, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए अमूल्य उपहार है। यह वह दिन है, जब भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के रणभूमि में अर्जुन को धर्म, कर्म और मोक्ष का अद्वितीय उपदेश दिया। गीता का प्रत्येक श्लोक जीवन के हर पहलू को आलोकित करता है और यह सिद्ध करता है कि यह ग्रंथ मात्र एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि एक सार्वभौमिक दर्शन है, जो हर युग और हर परिस्थिति में प्रासंगिक है।
उक्त विचार सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के कुलपति प्रो बिहारी लाल शर्मा ने गीता जयंती के अवसर पर विचार प्रकट करते हुए एक सन्देश दिया।
गीता का शाश्वत दर्शन

श्रीमद्भगवद्गीता का दर्शन हमें जीवन के उच्चतम आदर्शों का मार्गदर्शन देता है। इसमें निष्काम कर्म का जो संदेश दिया गया है, वह आज के भौतिकतावादी युग में और भी प्रासंगिक हो गया है। जब मानव अपने स्वार्थ और भौतिक सुखों में उलझा हुआ है, तब गीता का संदेश हमें अपने कर्तव्यों को निस्वार्थ भाव से निभानेv और आत्मा की शुद्धता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

गीता यह सिखाती है कि जीवन में सफलता केवल बाहरी उपलब्धियों से नहीं मापी जाती, बल्कि यह आंतरिक संतुलन और मानसिक शांति में निहित है। “योगः कर्मसु कौशलम्” का सिद्धांत हमें यह समझने में सहायता करता है कि हमारे कार्यों में दक्षता तभी आ सकती है, जब हम उन्हें समर्पण और अनुशासन के साथ करें।
गीता जयन्ती की प्रासंगिकता
आज के समय में जब समाज तनाव, अवसाद और भौतिक प्रतिस्पर्धा से घिरा हुआ है, गीता का संदेश एक संजीवनी के समान है। यह हमें बताती है कि सच्चा सुख भौतिक वस्तुओं में नहीं, बल्कि आत्मा की शांति और संतुलन में है। गीता के ‘स्वधर्म’ और ‘सर्वधर्म समभाव’ के सिद्धांत समाज में सहिष्णुता, प्रेम और समरसता की भावना को प्रोत्साहित करते हैं।

सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय का योगदान।

सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी, भारतीय ज्ञान परम्परा का एक अद्वितीय केंद्र है। यह विश्वविद्यालय सदियों से गीता और अन्य संस्कृत ग्रंथों के अध्ययन, अध्यापन और प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित है। गीता जयन्ती के अवसर पर विश्वविद्यालय विभिन्न संगोष्ठियों, व्याख्यानों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से गीता के शाश्वत संदेश को जन-जन तक पहुँचाने का कार्य करता है।
हमारा मानना है कि गीता केवल एक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन का मार्गदर्शन करने वाला प्रकाशस्तंभ है। विश्वविद्यालय इस बात के लिए प्रतिबद्ध है कि गीता के सिद्धांतों को न केवल भारत में, बल्कि पूरे विश्व में प्रचारित किया जाए, ताकि मानवता को सच्चे अर्थों में इसका लाभ मिल सके।
युवाओं के लिए गीता का संदेश।

गीता का “निष्काम कर्म” का सिद्धांत युवाओं के लिए विशेष रूप से प्रेरणादायक है। यह उन्हें यह सिखाता है कि कर्तव्य के प्रति समर्पण और अपने कार्यों में उत्कृष्टता लाने का प्रयास ही सच्चा धर्म है। गीता उन्हें जीवन की चुनौतियों का सामना आत्मविश्वास और धैर्य के साथ करने का साहस देती है।
गीता जयन्ती के इस पावन अवसर पर, मैं सम्पूर्ण मानव समाज से यह आह्वान करता हूँ कि वे गीता के दिव्य संदेश को अपने जीवन में आत्मसात करें। आइए, हम सब मिलकर गीता के उपदेशों के आलोक में अपने जीवन को आलोकित करें और एक ऐसे समाज का निर्माण करें, जो शांति, समरसता और सच्चे ज्ञान से परिपूर्ण हो।

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