
उत्तर प्रदेश 23 जून 2025 ( सूरज गुप्ता )
सिद्धार्थनगर। शिक्षा का अधिकार और सर्व शिक्षा अभियान के तहत देश के 6 से 14 वर्ष के बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार दिया गया, जिसके तहत गांव-गांव विद्यालय खोले गये। उत्तर प्रदेश सरकार के एक आदेश जिसमें कम संख्या के आधार पर विद्यालय को शिक्षक और बच्चों सहित पास के विद्यालय में मर्ज करने की बात कही गई। अब प्रश्न उठता है कि कम नामांकन का जिम्मेदार कौन है? कम छात्र संख्या का ठीकरा तमाम लोग शिक्षक को नकारा बताकर उसके ऊपर फोड़ते हैं, जो गलत है और उनके हारी हुई मानसिकता का परिचायक है। इसके लिए समाज और सरकार की नीतियां कहीं ज्यादा जिम्मेदार है। समाज में जहां अभिभावकों की बच्चों से काम लेने की प्रवृत्ति है। बड़े बच्चों द्वारा छोटे बच्चों की देखभाल करवाने की प्रवृत्ति है। माता-पिता के साथ खेत में पशुपालन काम में कार्य करवाने की प्रवृति और दुकान चलाने में सहयोग लेने की प्रवृत्ति, उन्हीं के सहारे शहर में कमाने जाने की प्रवृत्ति है। तो वहीं सरकार की नीतियां भी कम जिम्मेदार नहीं, एडमिशन के समय बच्चों का आधार, माता-पिता का आधार, राशन कार्ड, बैंक पासबुक की फोटो कॉपी, सभी पत्रजात में कोई भी विसंगति ना रहे आदि बाधाओं को पार करने के बाद नामांकन हो पाता है। इससे पूर्व 5 वर्ष की अवस्था तक प्रवेश हो जाता था। इस वर्ष से 6 वर्ष से कम आयु के बच्चे का एडमिशन कक्षा एक में नहीं लेना है। यू डाइस भरने और अपार बनाने में आ रही कठिनाई और अधिकारियों के दबाव के कारण पत्र जात में कोई भी विसंगति होने पर अभिभावक को पत्रजात सही कराने को कहा जा रहे हैं। आये दिन शिक्षक बहुउद्देशीय कर्मी बनकर जनगणना, बाल गणना, बीएलओ ड्यूटी, चुनाव ड्यूटी, संकुल प्रभारी ड्यूटी, एआरपी ड्यूटी, एमडीएम का संचालन, विद्यालय का समस्त डाटा ऑनलाइन करना या कार्य करने की जानकारी के अभाव में अपने पास से रुपए देकर कम्प्यूटर सेन्टर से करवाना, शैक्षिक सत्र चलाने में स्थानीय जलवायु और परिस्थितियों का ध्यान न रखते हुए दिल्ली के बच्चे से सुदूर देहात में बसे गांव के बच्चे की तुलना करना आदि तमाम ऐसे सरकार के नीतिगत कार्य हैं, जो शिक्षक को विद्यालय में उसके मूल कार्य शिक्षण से विरत करते है और समाज के देखने में वह अध्यापन नहीं करता है नकारा है, जिससे प्रवेश घट रहें हैं।सरकार की दो बच्चों की नीति को बढ़ावा देने और जन जागरुकता के कारण गांव में बच्चों की संख्या पहले से कम हुई है। सरकारी विद्यालय के एक किलोमीटर दायरे में किसी भी प्राइवेट स्कूल को मान्यता दे देने के कारण भी छात्र संख्या में गिरावट आई है। प्राइवेट स्कूल में प्लेवे से लेकर नर्सरी, एलकेजी, यूकेजी में भी एडमिशन ले लिया जाता है जहां बच्चा तीन वर्ष में ही प्रवेश कर लेता है एक बार बच्चा जब प्राइवेट स्कूल में चला गया, फिर सरकारी स्कूल में लाना कठिन हो जाता है। विद्यालयों की युग्मनज व्यवस्था बहुत खतरनाक साबित होगी, जिस प्रकार बिना सोची समझी रणनीति के कृषि में अंधाधुंध मशीनीकरण किया गया और परिणाम सामने है। खेतों में आग का लगना फसलों का डंठल जलाना ग्लोबल वार्मिंग बढ़ना, छुट्टा पशुओं की समस्या इसका कोई निदान नहीं हो पा रहा। आइए कुछ लाभ और हानि पर चर्चा करते है। अगर हम लाभ देखें तो सरकार को सिर्फ शिक्षक और छात्र का अनुपात बैलेंस करके बेसिक शिक्षा में रिक्ति नहीं होना दिखाना हो सकता है। मर्ज हुए बच्चों को पर्याप्त भौतिक और मानव संसाधनों की व्यवस्था करते हुए आवश्यक बेहतर शिक्षा प्रदान कराना, बन्द हुए स्कूल का उपयोग बाल वाटिका आंगनवाड़ी आदि के लिए करना है। हानि देखे तो, सबसे पहले आज जब अभिभावक बच्चे का नामांकन गांव में नहीं करा पा रहा है, तो क्या पास के गांव में करा लेगा?प्रवेश ले भी लिया तो 6 वर्ष का बच्चा झोला पीठ पर टांग कर एक दो किमी जा और आ पायेगा? रास्ते में एक्सीडेंट का खतरा कुत्ता, सियार, लोमड़ी का खतरा अलग से रहेगा। तमाम मातायें अपने बच्चों को गांव के विद्यालय में छोड़कर निश्चिंत होकर मजदूरी आदि कर लेती थी क्या अब वे कर पायेंगी? क्या मध्याह्न में बच्चे दौड़कर अपने घर जाकर निगरानी कर पाएंगे?सड़क पर बच्चियों के साथ हो रही बुरी घटनाएं बढ़ेंगी। गांव में पूरे गांव के लोग एक दूसरे को जानते और पहचानते हैं जिससे बच्चों को सामाजिक संबल मिल जाता है। बच्चा घर से गांव के विद्यालय बेखौफ पढ़ने जाता है। दूसरे का गांव और अपरिचित रास्ता अपरिचित रास्ते के लोग बच्चों के लिए कठिनाई का सबब बनेगा। क्या ठंडी, गर्मी और बरसात में 6 वर्ष का बच्चा पास के गांव तक पैदल जा पायेगा? तमाम पास के गांवों तक जाने वाले रास्ते बरसात में महीनों पुलिया सहित पानी में डूबे रहते बच्चा कैसे जायेगा? छोटे बच्चों का तबियत खराब होने पर तथा साफ सफाई हेतु दाई न होने से स्कूल में असहज स्थिति में कौन देखेगा? मर्ज होने वाले स्कूल की रसोईया बेरोजगार होंगी।ऐसे कई तथ्य है जो प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था के लिए खराब परिणाम देने वाले होंगे। जरूरत है इन विद्यालयों को बचाने की जिससे आने वाली पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित रह सकें।