**विषय **- *धर्म बनाम विकसित राष्ट्र*
_माना कि राजनीति का अपना कोई धर्म नहीं होता परन्तु धर्म की राजनीति जरूर हो सकती है। और भारत में आजकल यही हो रहा है
आज भारत के विभिन्न राज्यों में जिस प्रकार से धर्म की राजनीति पर कार्य किया जा रहा है। नफरत भरा माहौल पैदा करके सांप्रदायिक दंगे भड़काने की पूरी कोशिश की जा रही है तो ऐसे में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि आने वाले कुछ वर्षों में हमारा देश धार्मिक सियासत की भेंट चढ़ जएगा। जिसकी भरपाई कोई भी सरकार, राजनितिक दल या मजहब नहीं कर पाएगा। इसलिए आवश्यक है कि तमाम राजनैतिक दलों को धर्म की राजनीति करने से बचना चाहिए और भारत के संविधान के अनुरूप काम करना चाहिए, जिसके लिए वे बाध्य हैं।
डरो मत अंधियारों से अब भोर होने वाली है,
धर्म को राजनीति से दूर करने के लिए भयानक शोर होने वाला है।
शांति के भारत में अब क्रांति होने वाली हैं।

                *समस्या*

भारत को आजाद कराने में सभी भारतवासियों का योगदान था। अनेक महापुरुषों ने भारत देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी जिसके बाद हमारा भारत आजाद हुआ।
लेकिन भारत को आजाद हुए आज 75 साल हो गए, उसके बावजूद भी भारत के अनेक राज्यों में छोटे-मोटे विवाद आए दिन देखने को मिलते रहते हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों के आंकड़ों को देखा जाए तो जातिगत ,छुआछूत ,लड़ाई-झगड़े और दंगे-फसाद के मामले अधिक मात्रा में दर्ज किए गए हैं :–

  1. भारत में बेरोजगारी की समस्या चरम सीमा पर है।
  2. भारत में स्वास्थ्य सुविधाएं, दवाई ऑक्सीजन और वेंटीलेटर प्रमुख समस्या है।
  3. भारत में शिक्षा का स्तर दिन प्रतिदिन नीचे गिरता जा रहा है।
  4. भारत में भुखमरी की समस्या भी बहुत गंभीर स्थिति में है।
  5. भारत की अर्थव्यवस्था बिल्कुल खराब होती जा रही हैं।
  6. भारत में प्रतिदिन 350 लोग भारत की नागरिकता छोड़कर विदेशों में घर बसा रहे हैं।
    प्रमुख समस्याएं और भी बहुत सी हैं। जिन पर अभी तक कोई बात नहीं कर रहा। सभी लोग धर्म, जाति, संप्रदाय में उलझे हुए हैं, जिसे इन नेताओं ने प्रमुख समस्या बनाकर भारत वासियों के समक्ष रख दिया है। इस बात को समझने की जरूरत है।
    भारत के जितने मंत्री, विधायक एवं प्रधानमंत्री है, वह सभी शपथ तो संविधान की लेते हैं कि हम भारत में बिना किसी ईर्ष्या-द्वेष के समता-समानता-बंधुता बनाए रखेंगे। संविधान के अनुसार भारत में अनेक जाति समुदाय और संप्रदाय के लोग रहते हैं। मौजूदा सरकार की यह जिम्मेदारी होती है कि – हर एक जाति संप्रदाय के लोगों को सुरक्षा मुहैया करवाए। किसी भी जाति समुदाय जैसे अल्पसंख्यक वर्ग, पिछड़ा वर्ग, आदिवासी वर्ग पर किसी प्रकार का अत्याचार ना हो, अगर ऐसा होता है तो उस पर अंकुश लगाना सरकार की जिम्मेदारी बनती है। नहीं तो देश एक नई क्रांति की तरफ अग्रसर होगा।
    बाबासाहेब अंबेडकर जी ने यह शब्द संसद में कहे थे।
    विभिन्न राज्यों में हो रहे अत्याचार के उदाहरण इस प्रकार हैं –
  7. मध्य प्रदेश के खरगोन में हिंसा के बाद तुरंत अतिक्रमण बताकर बुलडोजर चला दिया गया ,क्या जांच इतनी जल्दी निष्पक्षता से हो चुकी थी?
  8. दिल्ली में जहांगीरपुरी में संप्रदायिक दंगे हुए और उसके बाद इतनी तेजी से वहां की पुलिस प्रशासन ने कार्य किया जिसमें अतिक्रमण के नाम पर तोड़फोड़ की गई।
  9. भरतपुर, राजस्थान में 14 अप्रैल 2022 को बाबासाहेब आंबेडकर जी की जयंती को लेकर अगड़ी जाति के लोगों ने आपत्ति जताई जिसके विरोध में हजारों की संख्या में बहुजन समाज के लोग अपने घरों को छोड़कर पलायन कर गए। क्या हम अब भारत में बाबासाहेब अंबेडकर जी की जयंती भी नहीं मना सकते।
  10. उड़ीसा, 14 अप्रैल 2022 को बहुजन समाज के लोग बाबासाहेब अंबेडकर की जयंती मना रहे थे। बजरंग दल के लोगों ने वहां पर तोड़फोड़ की। 10 से ज्यादा गाड़ियों को तोड़ा गया। कई युवाओं को गंभीर रूप से घायल कर दिया गया। आखिर क्यों?
  11. अरविंद केजरीवाल जी के एक कार्यकर्ता ने MLA का चुनाव लड़ा था वह हार गया। गुरदासपुर में फतेहपुर चूड़ियां नामक जगह पर 14 अप्रैल 2022 को बाबा साहब अंबेडकर की जयंती के लिए आपत्ति जाहिर की। उन्होंने कहा कि मुझसे परमिशन क्यों नहीं ली गई। अभी यह मामला पुलिस स्टेशन में चल रहा है।
  12. छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के इलाकों पर अडानी कंपनी के द्वारा 10 सालों से जबरन कब्जा किए हुए हैं। उनके खिलाफ आदिवासी धरना प्रदर्शन कर रहे है जिसका अभी तक कोई समाधान नहीं हुआ।
    डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी ने कहा था।
    “कोई भी संविधान अच्छा या बुरा नहीं होता उसको चलाने वाले लोग अच्छे या बुरे होते हैं।” भारत का संविधान अच्छा है इस बात को तो पूरे विश्व ने आज से 73 वर्ष पूर्व ही (26 नवंबर 1949 ई. को) स्वीकार लिया था। परंतु इसके लागू होने के बाद इन 73 वर्षों में अगर हम संविधान में निहित लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सके और अपने देशवासियों को भयमुक्त वातावरण उपलब्ध नहीं करा सके तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह संविधान गलत लोगों के हाथों में है। वर्तमान परिदृश्य क्या बयान कर रही है आप स्वयं पहचानें ? भारत देश को आजाद हुए 75 साल हो गए हैं मगर विभिन्न चुनावों के दरमियान यह देखने को मिलता है कि विभिन्न धार्मिक अल्पसंख्यक (मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई इत्यादि) बाहुल्य क्षेत्रों में भी नेता “हिंदू वर्ग” से होना बड़ी आश्चर्य की बात है। और ऐसे में यह सवाल खड़े होना जायज है कि विश्व का श्रेष्ठ संविधान पाने के बाद भी इन वर्गों का अपना कोई नेता नहीं है, ऐसा क्यों? जो कि अपनी बात कहने के लिए किसी दूसरे (धार्मिक) नेताओं की शरण मैं जाना पड़ता है ? परंतु क्या कोई भी हिंदू नेता अरविंद केजरीवाल, राहुल गांधी, अखिलेश यादव, मायावती जी, चन्द्रशेखर आजाद व तमाम दलों के नेताओं को इन धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रहे साजिशों का पर्दाफाश कर रहा है ? नहीं ना ? तो ऐसे में इनकी खामोशियां भी स्वयं में एक सवाल खड़े करती है कि क्या ये नेता अपनी नीतियों से दबे हुए हैं या नियत से ? ऐसा क्यों ? क्या आज देश में ये अल्पसंख्यक समुदाय को सिर्फ वोट बैंक की राजनीति के तहत ही इस्तेमाल करते हैं ? क्या ये मानव नहीं है ? इनका अपना कोई मानवीय मौलिक अधिकार नहीं ? संविधान में तो देश के प्रत्येक नागरिक को संविधान प्रदत्त अधिकार प्राप्त है। परंतु उनके प्रति यह अनदेखापन सिर्फ इसलिए कि कहीं भारत में जो हिंदू 80% वोटर्स है वह कहीं रूठ ना जाए। इसलिए आप 20% अल्पसंख्यकों (मुसलमानों) के साथ नहीं खड़े हैं, तो आप इन लोगों के साथ न्याय नहीं कर रहे हैं। आप थोड़ा बहुत संवेदना दिखाकर सिर्फ मुसलमानों का वोट लेना तो चाहते हो परन्तु इनके समर्थन में कुछ नहीं बोलते। ऐसी ओछी राजनीति नहीं चलेगी।
    भारत एक लोकतांत्रिक देश है । यहां पर सभी वर्ग के लोगों को अधिकार दिए गए हैं। भारतीय संविधान द्वारा हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण, प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक, गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को
    सामाजिक ,आर्थिक और राजनीतिक न्याय , विचार,अभिव्यक्ति, विश्वास धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्रीय की एकता अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प लेते हैं।

भारत का मुसलमान और बहुजन समाज किसी शासक वर्ग का विरोधी हो भी सकता है और नहीं भी । परंतु सरकार की गलत नीतियों का विरोध जरूर कर सकता है। लेकिन ये वर्ग राष्ट्र विरोधी ना तो कभी था और ना होगा। लेकिन राजनितिक गलियारों में इनको बदनाम किया जाता रहेगा ऐसी मंशा साफ-साफ दिखाई देती है।

             *समाधान* 
  1. भारत के संविधान में अनेक अधिकार दिए गए हैं, जिसमें अनुच्छेद 25 से 30 तक धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए अधिकारों का वर्णन है जिसकी खुलेआम अवहेलना की जा रही है। हमारा देश सविधान से चलेगा ना कि किसी की तानाशाही से। इस बात की आशंका जताई जा रही है कि भारत में जर्मनी जैसे हालात पैदा किए जा रहे हैं। इसलिए देश के अनेक राज्यों में इस तरह की सांप्रदायिक घटनाएं घटित हो रही हैं । उन घटनाओं का निष्पक्षता से जांच किया जाना आवश्यक है ताकि सभी लोग यह सुनिश्चित कर सकें कि जो न्याय मिल रहा है उसमें किसी भी प्रकार का भेदभाव नही हो रहा है।
  2. और यह तभी संभव हो सकता है, जब भारत के संविधान के अनुसार हर एक वर्ग (अल्पसंख्यक , पिछड़ा ,आदिवासी) के लोगों को अधिकारों से वंचित ना किया जाए।
  3. अधिकतर केस में देखा गया कि गरीब, कमजोर, लाचार और असहाय लोगों पर अत्याचार होता है फिर उन पर ही दंगा-फसाद कराने का आरोप लगाया जाता है। और उन्हीं के लोगों को मारा पीटा भी जाता है। उनके घर तोड़ दिए जाते हैं, और सजा भी उस पीड़ित पक्ष को दी जाती है। जबकि उस समय अपराधी दोनों पक्षों के है। बिना निष्पक्षता से जांच किए सिर्फ एक के खिलाफ कार्रवाई करना संविधान के विरुद्ध है। जबकि इन परिस्थितियों से निपटने का मुकम्मल उपाय संविधान के अनुच्छेद 46 में बताया गया है कि उपरोक्त तमाम बातों से सुरक्षा करना राज्य अर्थात सरकार की जिम्मेदारी है। जिसको पूरा करने के लिए उन्होंने शपथ भी ले रखी हैं। सभी धर्म मानवता और दया का दावा करते हैं लेकिन भारत के इन धार्मिक झगड़ों को देखकर तो ऐसा लगता है मनो मानवता स्वयं धर्म से दया की भीख मांग रही है।
    मेरे इस लेख का मकसद किसी धार्मिक कट्टरता पर प्रहार या किसी वर्ग विशेष का समर्थन करना बिल्कुल भी नहीं है बल्कि उसे लिखने का मकसद भारत देश में शांति, प्रेम और न्याय व्यवस्था बनाए रखना है। किसी भी घटना की निष्पक्ष जांच नहीं होने से आम जानता में आक्रोश की चिंगारी उत्पन्न होना स्वाभाविक है। अगर इस आक्रोश को रोका नहीं गया तो भारत में एक बड़ी क्रांति जन्म लेगी जो इन अव्यवस्थाओं को उखाड़ कर फेक देगी ।
    इसलिए मेरा मानना है कि –
    धर्म को राजनीति से दूर करना होगा तभी हमारा भारत विकसित राष्ट्र बन पाएगा।

धर्मेंद्र कुमार कनौजिया सोशल एक्टिविस्ट 9582448403

By admin_kamish

बहुआयामी राजनीतिक पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष

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