उत्तर प्रदेश के जनपद लखीमपुर खीरी के ओयल कस्बे ( सीतापुर और लखीमपुर मार्ग पर) में बने एक अनोखे मंदिर में शिवजी, मेंढक की पीठ पर विराजमान हैं। ‘मांडूक तंत्र’ पर आधारित यह अद्वितीय शिव मंदिर मेंढक मंदिर के नाम से जाना जाता है। यही नहीं, यह देश का इकलौता मेंढक की पीठ पर निर्मित मंदिर है इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां नर्मदेश्वर महादेव का शिवलिंग रंग बदलता है। यहां खड़ी नंदी की मूर्ति है, जो आपको कहीं ओर देखने को नहीं मिलेगी। इनाडुइंडिया के अनुसार इतिहासकारों का मानना है कि मंदिर राजस्थानी स्थापत्य कला पर बना है और तांत्रिक मण्डूक तंत्र पर बना है। मंदिर के बाहरी दीवारों पर शव साधना करती उत्कीर्ण मूर्तियां इसे तांत्रिक मंदिर ही बताती है ऐसा माना जाता है की ओयल शैव संप्रदाय का प्रमुख केंद्र था। यहां के शासक भगवान शिव के उपासक थे। इस कस्बे के मध्य में स्थित मंडूक यंत्र पर आधारित प्राचीन शिव मंदिर भी यहां ऐतिहासिक गरिमा को प्रमाणित करता है। यह क्षेत्र 11वीं शताब्दी के बाद से 19वीं शताब्दी तक चाहमान शासकों के आधीन रहा। इसके बाद चाहमान वंश के राजा बख्श सिंह ने इस अद्भुत मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर की वास्तु परिकल्पना कपिला के एक महान तांत्रिक ने की थी। तंत्रवाद पर आधारित इस मंदिर की वास्तु संरचना अपनी विशेष शैली के कारण मनमोह लेती है। मेंढक मंदिर में महाशिवरात्रि के अलावा दीपावली पर भी भक्त बड़ी संख्या में भगवान शिव के इस अनोखे रूप के दर्शनों के लिये आते हैं। कहा जाता है कि इन अवसरों पर यहां पूजा करने से विशेष फलों की प्राप्ति होती है मंदिर का छत्र भी सूर्य की रोशनी के साथ पहले घूमता था। पर, अब वो क्षतिग्रस्त पड़ा है। मेंढक मंदिर की एक खास बात इसका कुआं भी है। जमीन तल से ऊपर बने इस कुएं में जो पानी रहता है वो जमीन तल पर ही मिलता है। इसके अलावा खड़ी नंदी की मूर्ति मंदिर की विशेषता है। मंदिर का शिवलिंग भी बेहद खूबसूरत है और संगमरमर के कसीदेकारी से बनी ऊंची शिला पर विराजमान है। नर्मदा नदी से लाया गया शिवलिंग भी भगवान नर्मदेश्वर के नाम से विख्यात हैं। बेहद खूबसूरत और अदभुत मेंढक मंदिर को यूपी की पर्यटन विभाग ने भी चिह्नित कर रखा है। दुधवा टाइगर रिजर्व कॉरीडोर में इस मंदिर को भी विश्व मानचित्र पर लाने के प्रयास जारी हैं..