रिपोर्ट:रोहित सेठ

वाराणसी भारतीय जनता पार्टी विधि प्रकोष्ठ काशी क्षेत्र के संयोजक शशांक शेखर त्रिपाठी एडवोकेट के द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम पर नागरिकों से किसी भी भाषाओं में ना आने की अपील की है और बताया है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम-2019 नागरिकता संशोधन कानून को लेकर देशविरोधी तत्व देश के नागरिकों के बीच अफवाह फैलाने में लगे है। हमें इस कानून की वास्तविकता व जमीनी हकीकत अवश्य जान लेनी चाहिए ताकि इस कानून को लेकर हम किसी बहकावे या गलतफहमी में न रहे और दूसरों को भी समझा सकें। इस हेतु निम्नलिखित विचारणीय बिन्दु है-

1- यह कानून नागरिकता देने का है न कि नागरिकता लेने का। किसी भी भारतीय नागरिक की नागरिकता छीनने का प्रावधान इस कानून में नहीं है। 2- इस कानून के अनुसार पाकिस्तान, बंगलादेश व अफगानिस्तान के अल्पसंख्यक हिन्दू सिख, जैन, पारसी, क्रिश्चियन व बौद्ध धर्म के उन लोगों को नागरिकता दी जायेगी जो 31 दिसम्बर, 2014 से पहले देश में आ गये हों और उन्हे देश में रहते पाँच वर्ष हो गये हों।

3- चूँकि पाकिस्तान, बंगलादेश व अफगानिस्तान ने अपने को मुस्लिम राष्ट्र घोषित किया है इसलिये वहाँ के वहुसंख्यक मुस्लिम धार्मिक रूप से प्रताणित नही हो सकते है। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की संख्या 1947 में 23% थी जो 2011 में 3.7% रह गयी है। इसीतरह बंगलादेश व अफगानिस्तान में हिन्दू आदि अलपसंख्यकों की संख्या लगातार घटती जा रही है। इसका कारण धर्मरिवर्तन, बलात्कार, नरसंहार, संपतियों पर अवैध कब्जा आदि रहा है।

4- इस कानून के द्वारा व्यक्तिगत नागरिकता लेने पर कोई रोक नही लगायी गयी है। मुस्लिम भी नागरिकता ले रहे है। अदनान सामी, प्रधानमन्त्री जी के संसदीय क्षेत्र में दो मुस्लिम छात्राओं आदि को भारतीय नागरिकता मिल चुकी है और बहुतों को मिल रही है।

5- राष्ट्रपिता महात्मागाँधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिह, ममता बनर्जी, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आदि भी पाकिस्तान, बंगलादेश में प्रताणित हिन्दू व सिखों को भारतीय नागरिकता दिये जाने की मांग पूर्व में करते रहे है।

6- उपरोक्त से स्पष्ट है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम किसी भी धर्म के भारतीय नागरिकों के विरोध में नही है पर कुछ राजनीतिक दल सरकार की दिनों दिन बढ़ रही लोकप्रियता पर अंकुश लगाने के दुराशय से अफवाह फैला रहे है कि यह कानून भारतीय मुस्लिम नागरिकों के विरूद्ध है। इसी अफवाह को बढ़ावा देने व वोटो के तुष्टीकरण की स्वार्थी राजनीति करने वाली पार्टियों की राज्य सरकारों के कुछ मुख्यमत्रियों ने इस कानून को अपने राज्य में न लागू करने की असंवैधानिक व हास्यास्पद घोषणायें की है। संविधान में व्यवस्था है कि नागरिकता से सम्बन्धित बने

केन्द्रीय कानून का पालन करना राज्य सरकार की बाध्यता है। फिर कुछ राज्य सरकारे इस संबैधानिक कानून को अपने राज्य में कैसे रोक पायेंगी? उन्होंने संविधान की शपथ लेते हुए मुख्यमंत्री पद ग्रहण किया है फिर वो कैसे संविधान का उल्लंघन कर सकेंगे? 7- वोट की राजनीति करने वाले कुछ राजनीतिक नेताओं ने घोषणा की है कि वो एन०पी०आर० (नेशनल पापुलेशन राजिस्टर) का बहिष्कार करेगें।

यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि सी०ए०ए० का एन०पी०आर० से कोई सम्बन्ध नही है। एन०पी०आर० जो कांग्रेस सरकार द्वारा 2011 में लागू किया गया था, के अनुसार इसमें सूचना देने के लिये कोई भी व्यक्ति स्वतंत्र है। उसे साक्ष्य के रूप में कोई कागज या अभिलेख या जन्म प्रमाणपत्र नही देना होगा। व्यक्ति के द्वारा दी गयी सूचना ही सही मानकर दर्ज कर ली जायेगी। जनगणना व एन०पी०आर० प्रत्येक दस वर्ष पर किये जाने का प्रावधान है। इसके आधार पर केन्द्र व राज्य की सरकारें अपनी प्लानिंग व कार्य योजना बनाती हैं। सन 2021 में होने वाली जनगणना तथा एन०पी०आर० में यदि कोई व्यक्ति नाम नही दर्ज करायेगा तो सूची में नाम न रहने से उसका व्यक्तिगत नुकसान होगा क्योकि उसे आयुष्मान, उज्जवला, सौभाग्य, प्रधानमंत्री आवास आदि योजनाओं का लाभ उसे प्राप्त नही हो सकेगा।

हम आहवान करते है कि विपक्षी राजनीतिक दलों के षड्यंत्र में ना आए क्योंकि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सी०ए०ए०) से किसी भी भारतीय नागरिक चाहे वो हिन्दू हो या मुस्लिम हो या कोई भी धर्म का हो, उसको किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नहीं है।

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