गंगा की आंख आज आंसू से भर गई।
उसके सफेद तन पे सियाही बिखर गई।
रोहित सेठ
हम जैसे कुपुत्रों को जिसने जनम दिया।
बेटों का जुल्म झेल वो जीते जी मर गई।
माँ गंगा अब आप अपने लोक प्रस्थान करें।आपकी दुर्दशा अब देखी नही जाती।आपका जल अब आचमन योग्य भी नही रहा।आपके गंगा घाटी बेसिन में न्यूनतम जल प्रवाह भी नही रह गया है।आपके जल में अब कीड़े भी पड़ने लगे हैं।त्रैलोक्य पावनी माँ अब इन स्वार्थी मनुष्यों को आपकी भी कद्र नही रह गई है।आपके सीने पर बांधों का मकड़जाल बिछा कर आपके सांस को ही रोक दिया है।अब घड़ियाली आंसू बहाकर आपके नाम पर आपके तथाकथित बेटे अपना स्वार्थ मात्र सिद्ध करते हैं।आसमान में जितने तारे हैं उससे अधिक लोगों को तारने वाली पतित पावनी माँ आपके जिस जल को निराकार ब्रम्ह की संज्ञा दी गई वह जानलेवा बन चुका है।आपके जल के नाम पर आपकी घाटी में शहरों का मलजल बह रहा है।
तिल तिल मरती अत्यंत प्रदूषित माँ गंगा की इस भयानक दुर्दशा को देखकर कैसे गंगा दशहरा की खुशी मनाएं??