गायन शैली में सृजित शाश्वती गीता एक विशिष्ट कृति धर्मेंद्र राय, एम एल सी(विद्वान साहित्यकारों ने डॉ. कवीन्द्र नारायण द्वारा रचित शाश्वती गीता का लोकार्पण किया) ॥

रोहित सेठ

वाराणसी, 08 जुलाई (नि सं) भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता एवं उत्तर प्रदेश विधान परिषद सदस्य धर्मेंद्र राय ने आज यहाँ कहा कि वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार डॉ. कवीन्द्र नारायण श्रीवास्तव द्वारा श्रीमदभगवद्गीता का गायन शैली में हिन्दी गीतों में रूपांतरित ” शाश्वती गीता ” एक विशिष्ट कृति है जो एक सर्व सुलभ सार ग्रंथ बन गया है l प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ नीरजा माधव के सारनाथ स्थित आवास पर हिन्दी हितैषी परिषद के तत्वावधान में आयोजित एक भव्य समारोह में नामचीन साहित्यकारों ने शाश्वती गीता का लोकार्पण किया l राय ने कहा कि भारतीय वाड़्मय में कुछ ग्रन्थ रत्न ऐसे हैं जिन्हें ‘सार-ग्रन्थ’ कहा जा सकता है, गीता में वेद-पुराण-उपनिषद अनेक शास्त्रों का सार समाहित है। मूल गीता रूपांतरित होकर शाश्वती गीता के रूप में एक ऐसी ही कृति बन गई है l
प्रख्यात साहित्यकार डॉ नीरजा माधव ने इस अवसर पर कहा कि शाश्वती गीता संस्कृत का सिर्फ रूपांतरण ही नहीं है बल्कि भावानुभावित काव्य ग्रंथ के रूप में गीतों की रचना की गई है और यही कारण है कि यह ग्रन्थ अपना अतिरिक्त वैशिष्ट्य लिए है lअंग्रेजी भाषा में गीता पर शोध कार्य कर चुके पद्मनाभ त्रिवेदी ने कहा कि इसमें दो- राय नहीं कि यह ग्रन्थ पाठकों को वाकई गहन चिन्तन सौंपता है। उन्होंने कहा कि गीता को सुगीता बनाने का कार्य शाश्वती गीता के माध्यम से बड़ी बखूबी ढंग से डॉ कवीन्द्र ने किया है इस पुस्तक का सभी विद्वतजन को भलीभांति सदुपयोग करना चाहिए l गीता तो भगवान श्रीकृष्ण के मुखारबिन्द से निकली है जिसको बहुत ही सरल-सहज भाषा में रूपांतरित किया गया है।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ इंदीवर ने कहा कि कवीन्द्र नारायण ने गीता के भाव, कथ्य-कथन का आकलन कर मूल गीता के भावों का बड़ा ही सटीक चित्रण किया है । शाश्वती गीता के रूप में रचनाकार की काव्य-प्रतिभा का यह प्रमाण है ।
साहित्यकार प्रो. राम सुधार सिंह ने कहा कि व्यापक सन्दर्भ में कवि ने ने गीता के संवेदनशील पक्ष के मोहक और मार्मिक मुद्राओं का वेगवत् अभिव्यंजन किया है। शाश्वती गीता के सभी अध्यायों में भाषा और शैली की ताजगी बनी हुई है l
साहित्यकार डॉ मंजुला चतुर्वेदी ने कहा कि गीता के अठारहों अध्याय का सर्वसुलभ भाषा में सृजन सहज नहीं है लेकिन डॉ कवीन्द्र ने बड़ी कला-कुशलता से यह कार्य संपन्न किया है।
प्रो. श्रद्धानंद ने कहा कि पिंगलाचार्य द्वारा रचित ‘पिंगलच्छन्द: सूत्रम्’ ग्रन्थ के अनुसार एक अक्षर का और एक पद का भी छन्द होता है। इसके अलावा एक गाथा छन्द होता है जिसमें अक्षरों और मात्राओं का भी नियम है । शाश्वती गीता में इनका अच्छी तरह से नियमन और निर्वहन किया गया है l
परिषद के अध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार हिमांशु उपाध्याय ने कहा कि शाश्वती गीता में रचित गीतों को मूल गीता के श्लोकों के परिप्रेक्ष्य में देखना होगा जिसमें अभिव्यक्ति की गतिमयता ने इसे बहुत ही सहज और सरल बना दिया है l
सोच विचार पत्रिका के संपादक नरेंद्र नाथ मिश्र ने समारोह की अध्यक्षता करते हुए कहा कि शाश्वती गीता के प्रत्येक अध्याय की भाव-भाषा साहित्य के आस्वादन को और अधिक बढ़ाता है। लेखक ने अपनी रचना की स्निग्धता से इसे सहज गुणमयी बना दिया है l
समारोह का कुशल संचालन शिक्षाविद् डॉ बेनी माधव ने किया l इस अवसर पर डॉ कवीन्द्र ने शाश्वती गीता के कुछ अंश का गायन शैली में पाठ किया l परिषद के संयोजक ओम धीरज ने धन्यवाद दिया l समारोह में शिक्षाविद् डॉ. कृष्णा निगम, काशी पत्रकार संघ के अध्यक्ष डॉ. अत्रि भारद्वाज, महामंत्री अखिलेश मिश्र, सुरेंद्र वाजपेयी, प्रो बाबू राम त्रिपाठी, राजीव सिंह, डॉ. पद्मनाभ त्रिवेदी, कंचन सिंह परिहार, संतोष प्रीत, डॉ शरद श्रीवास्तव, डॉ शशिकला पांडेय सहित कई साहित्यकार और पत्रकार उपस्थित थे l

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