सावन मास में भगवान शिव के निमित्त किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठान सम्पूर्ण प्रकृति को समर्पित हैं- कुलपति प्रो शर्मा॥

रोहित सेठ

भारत भौगोलिक दृष्टि से अपनी विविधता से परिपूर्ण एक समृद्ध देश है। भारत का ऋतु चक्र छह कालखंडों में विभाजित है। ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर और वसंत। महाकवि कालिदास द्वारा रचित ऋतुु-संहार में भारत के ऋतुओं का बड़ा सुन्दर दार्शनिक वर्णन मिलता है। यहां ऋतुओं को भी पूजा जाता हैं। उनका भी आभार अपने तरीके से व्यक्त किया जाता हैं।लेकिन इन सभी धार्मिक अनुष्ठानों के आयोजन का उद्देश्य प्रकृति संरक्षण के माध्यम से सम्पूर्ण विश्व के प्राणी मात्र की रक्षा व कल्याण सुनिश्चित करना ही है ।
उक्त विचार सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय,वाराणसी के कुलपति प्रो बिहारी लाल शर्मा ने आज श्रावण मास के प्रथम सोमवार को श्रावण मास और प्रकृति विषय पर अपने विचार व्यक्त किया।
हमारे देश की परम्परायें हमें हमेशा सम्पूर्ण मानवता के कल्याण के लिये ईश्वर से जुडने की प्रेरणा देती हैं।-
इन्ही ऋतुओं में से सावन शिव जी का अत्यंत प्रिय माह है। कई विशेष त्योहार श्रावण के इस महीने में मनाए जाते हैं। हमारे देश की परंपराएं हमें हमेशा ईश्वर से जोड़ती हैं। वर्षा ऋतु से ही चार महीने के त्योहार शुरू हो जाते हैं, वर्षा ऋतुु जल का प्राय है, जल ही संपूर्ण जीव जगत को जीवन प्रदान करता है।श्रावण मास भगवान शिव के पूजन और अभिनंदन का मास है।
श्रावण माह में कांवड़ियों के बम बोल की गूंज, जल की अतुलनीय महत्ता को दर्शाते हुए, जल संरक्षण का संदेश देती है। वर्षा का जल, ग्रीष्म की ऊष्मा से मृत प्राय पादप और जंतु जगत में नवजीवन का संचार कर देता है। इस बार का सावन अपने आप में अनूठा होगा।भगवान शिव और प्रकृति के मध्य एक गहरा संबंध है।

शिव भूतनाथ, पशुपतिनाथ, अमरनाथ व अनाथों के नाथ आदि सब रूपों में कहीं न कहीं जल, मिट्टी, रेत, शिला, फल, पेड़ के रूप में पूजनीय हैं। जल साक्षात शिव है, तो जल के ही जमे रूप में अमरनाथ हैं। बेल शिववृक्ष है तो मिट्टी में पार्थिव लिंग है। गंगाजल, पारद, पाषाण, धतूरा फल आदि सब में शिव सत्ता समाहित है। इसलिए भगवान शिव को संपूर्ण प्रकृति कहना कोई अतिशयोक्ति न होगा।

श्रावण मास की वर्षा, भगवान शिव के विषपान के कारण गर्म शरीर को ठंडक प्रदान करता है। शायद इसीलिए श्रावण माह , भगवान शिव का सबसे अधिक प्रिय मास माना जाता है। हिंदू पंचांग में महीनों के नाम नक्षत्रों के आधार पर रखे गए हैं। उसी प्रकार श्रावण महीना श्रवण नक्षत्र के आधार पर रखा गया है। श्रवण नक्षत्र का स्वामी चंद्र होता है। चंद्र भगवान भोलेनाथ के मस्तक पर विराजमान है।

जब सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करता है, तब सावन महीना प्रारंभ होता है। सूर्य गर्म हैं एवं चंद्र ठंडक प्रदान करते हैं, इसलिए सूर्य के कर्क राशि में आने से झमाझम बारिश होती है। जिसके फलस्वरूप लोक कल्याण के लिए विष को ग्रहण करने वाले देवों के देव महादेव को ठंडक व सुकून मिलती है। शायद यही कारण है कि शिव का सावन से इतना गहरा लगाव है।
भगवान शिव जो तप-जप तथा पूजा आदि से प्रसन्न होकर भस्मासुर को ऐसा वरदान दे सकते हैं कि वह उन्हीं के लिए प्राणघातक बन गया, वह प्रसन्न होकर किसको क्या नहीं दे सकते हैं? देहधारी का जीवन आधार उन्हीं दयालु शिव की दया है। अन्यथा समुद्र से निकला हलाहल शरीरधारियों को जलाकर भस्म कर देता पर दयानिधान शिव ने उस विष को अपने कंठ में धारण कर समस्त जीव समुदाय की रक्षा हेतु बर्फ से ढके हिमालय में अपने निवास स्थान कैलाश को चले गए।विष की उग्रता को कम करने के लिए और संसार का उपकार करने हेतु अपने सिर पर शीतल किंतु उग्रधारा वाली नदी गंगा को धारण कर रखा है। उस विष की उग्रता और ऊष्मा को कम करने के लिए अत्यंत शीतल प्रकृति वाले चंद्रमा को धारण कर रखा है। जैसा कि स्पष्ट है कि भगवान शिव पत्र-पुष्पादि, एक लोटा भर जल से ही प्रसन्न हो जाते हैं।
मात्र थोड़ी सी पूजा से ही भोलेनाथ की अमोघ कृपा प्राप्त की जा सकती है। सावन माह में भगवान शिव के निमित किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठान शिव के रूप में संपूर्ण प्रकृति को समर्पित है। संपूर्ण वनस्पति, जीव जगत, जल और पर्वत सभी अपने आप में महादेव शिव का ही प्रतिरूप है। भगवान शिव की पूजा के रूप में श्रावण मास के धार्मिक अनुष्ठान वृहद जीवनदायिनी प्रकृति का आभार व्यक्त करने का माध्यम है।

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