सनातन संस्था का लेख !भाई-बहन का त्यौहार – रक्षा बंधन।

रोहित सेठ

रक्षाबंधन अर्थात राखी का त्यौहार । यह भाई-बहन का त्यौहार है । रक्षाबंधन का त्यौहार श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है । इस दिन बहन अपने भाई को प्रेम के प्रतीक के रूप में राखी बांधती है । इसलिए इस दिन को राखी पूर्णिमा भी कहा जाता है । राखी बांधने का उद्देश्य होता है, ‘भाई का उत्कर्ष हो और भाई समय पर बहन की रक्षा करे ।’ राखी बांधने पर भाई अपनी बहन को उपहार देकर आशीर्वाद देता है । सहस्रों वर्षों से चले आ रहे इस रक्षाबंधन त्यौहार का इतिहास, शास्त्र, रक्षा बंधन मनाने की पद्धति और इस त्यौहार का महत्त्व आगे इस लेख में दिया गया है ।

रक्षाबंधन का त्यौहार भाई-बहन में प्रेम की वृद्धि करने के साथ ही साथ उनमें लेन-देन का हिसाब अल्प करने में भी सहायता करता है । वैसे ही अन्य त्यौहारों का भी शास्त्र समझकर मनाने से हमें अधिक लाभ होता है ।

इतिहास – 1. ‘पाताल के बलिराजा के हाथ पर राखी बांधकर, लक्ष्मी ने उन्हें अपना भाई बनाया एवं नारायण को मुक्त करवाया । वह दिन था श्रावण पूर्णिमा ।’

  1. ‘बारह वर्ष इंद्र और दैत्यों में युद्ध चला । हमारे 12 वर्ष अर्थात उनके 12 दिन । इंद्र थक गए थे और दैत्य भारी पड रहे थे । इंद्र इस युद्ध में स्वयं के प्राण बचाकर भाग जाने की स्थिति में थे । इंद्र की यह व्यथा सुनकर इंद्राणी गुरु की शरण में पहुंची । गुरु बृहस्पति ध्यान लगाकर इंद्राणी से बोले, ‘‘यदि तुम अपने पतिव्रता बल का उपयोग कर यह संकल्प करो कि मेरे पतिदेव सुरक्षित रहें और इंद्र की दांयी कलाई पर एक धागा बांधो, तो इंद्र युद्ध में विजयी होंगे ।’’ अंत: ऐसा करने पर इंद्र विजयी हुए और इंद्राणी का संकल्प साकार हो गया ।

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः ।
तेन त्वाम् अभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।

अर्थ : ‘जो बारीक रक्षासूत्र महाशक्तिशाली असुरराज बलि को बांधा गया था, वही मैं आपको बांध रही हूं । यह धागा न टूटे और सदैव आपकी रक्षा हो ।’

  1. भविष्यपुराण में बताए अनुसार रक्षाबंधन मूलतः राजाओं के लिए था । अब यह त्यौहार सभी लोग मनाते हैं ।

राखी बांधने का शास्त्र – भाई – बहन के बीच का लेन-देन घटता है। बहन एवं भाई का एक-दूसरे के साथ साधारणत: 30 प्रतिशत लेन-देन का हिसाब होता है । यह लेन-देन का हिसाब राखी पूर्णिमा जैसे त्यौहारों के माध्यम से घटता है अर्थात वह स्थूल से एक-दूसरे के बंधन में अटकते हैं; परंतु सूक्ष्म-रूप से आपसी लेन-देन के हिसाब को समाप्त करते हैं ।

भावनिक दृष्टिकोण : भाई बहन के निर्मल प्रेम से काम क्रोध को निष्प्रभावी करना। रक्षाबंधन यह विकारों में अटकनेवाले युवा-युवतियों के लिए एक व्रत है । भाई को राखी बांधने से अधिक महत्त्वपूर्ण है किसी युवती / स्त्री द्वारा किसी युवक / पुरुष को राखी बांधना । इससे विशेषतः युवकों एवं पुरुषों का युवती अथवा स्त्री की ओर देखने का
दृष्टिकोण परिवर्तित होने में सहायता होती है।

चावल (कच्चे) के कणों का समुच्चय राखी के रूप में रेशमी धागे से बांधने की पद्धति क्यों है ? चावल सर्वसमावेशकता का प्रतीक है । अर्थात वह सभी को अपने में समा लेनेवाले तथा सर्व तरंगों का उत्तम आदान-प्रदान करने वाला है । चावल का समुच्चय श्वेत वस्त्र में बांधकर वह रेशम मे धागे से शिवरूपी जीव के दाएं हाथ पर बांधना अर्थात एक प्रकार से सात्त्विक रेशमी बंधन बांधना । रेशमी धागा सात्त्विक तरंगों की गति वहन करने में अग्रणी है । कृति के स्तर पर प्रत्यक्ष कर्म होने हेतु यह रेशमी बंधन प्रत्यक्ष बनाया जाता है । राखी बांधने वाले जीव में विद्यमान शक्ति तरंगें चावल के माध्यम से शिवरूपी जीव की ओर संक्रमित होने से उसकी सूर्यनाडी कार्यरत होती है तथा उसमें विद्यमान शिवतत्त्व जागृत होता है । चावल के कणों के माध्यम से शिव की क्रियाशक्ति कार्यरत होती है एवं वायुमंडल में कार्यतरंगों की गति भी प्रक्षेपित होती है, जिससे वायुमंडल के रज-तम कणों का विघटन होता है । इस प्रकार रक्षाबंधन का मूल उद्देश्य शिव और शक्ति के संयोग से इस दिन का लाभ प्राप्त करना है । यह मानवजाति की दृष्टि से अधिक इष्ट होता है ।’

देवताओं के चित्र वाली राखियाें का उपयोग न करें ! – वर्तमान स्थिति में हाट में अर्थात मार्केट में रक्षाबंधन के लिए विभिन्न प्रकारकी राखियां मिलती हैं । परंतु उनमें से अधिकांश राखियां दिखावटी होती हैं । वे सात्त्विक नहीं होतीं । दिखावटी राखी लेने की अपेक्षा, ऐसी राखी लेनी चाहिए जो सात्त्विक हो एवं जिसमें ईश्वरीय तत्त्व आकृष्ट करने की क्षमता हो । सात्त्विक राखी के कारण सत्त्वगुण में भी वृद्धि होती है ।

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