छात्रों ने ‘स्वच्छता ही सेवा है’ इस अभियान के अन्तर्गत मन्दिर की साफ सफाई की।
रोहित सेठ
राष्ट्रीय सेवा योजना, आर्य महिला पी.जी.काॅलेज, इकाई-सी , कार्यक्रम अधिकारी डॉक्टर पुष्पा त्रिपाठी के निर्देशन में आज दिनांक 20.9. 2024 को पुराणों में वर्णित कपर्दीश्वर महादेव के मन्दिर में छात्रों ने ‘स्वच्छता ही सेवा है’ इस अभियान के अन्तर्गत मन्दिर की साफ – सफाई की । मन्दिर को जल से धोया और पूजा अर्चना की। यह मन्दिर वाराणसी के चेतगंज में स्थित है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य लोगों में स्वच्छता के प्रति जागरुकता उत्पन्न करना है । स्वच्छ परिवेश में ही स्वास्थ्य का संरक्षण संभव हो सकता है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है । हमारा परम कर्तव्य है कि हम अपने घर से आरम्भ करके समाज और सम्पूर्ण राष्ट्र को स्वच्छ बनाने का संकल्प करें जिससे हमारा देश रोग मुक्त हो सके। इसके द्वारा हम रोगों से अपना बचाव कर सकते हैं।
काशी में कपर्देश्वर लिंग काशी के पञ्च लिंगों में से एक है जैसा कि कूर्मपुराण में कहा गया है कि काशी में बयालीस लिंग हैं जिनकी पूजा अवश्य करनी चाहिए । इन्हें मोक्ष लिंग कहा जाता है। यदि सभी का दर्शन न कर सकें तो कम से कम काशी में इन पञ्च लिंगों का तो दर्शन अवश्य ही करना चाहिए।
कपर्दीश्वर मन्दिर काशी की सीमा पर ‘पिशाचमोचन कुण्ड’ नामक एक विशाल झील के किनारे स्थित है। कपर्दीश्वर महादेव की स्थापना भगवान् शिव के अत्यत प्रियगण कपर्दी ने की थी। उन्होंने इसके ठीक बगल में विमलोदक कुण्ड की भी स्थापना की थी। विमलोदक कुण्ड के जल को छूने मात्र से ही व्यक्ति का अस्तित्व शुद्ध हो जाता है।
कपर्दीश्वर महादेव की महिमा का वर्णन करने वाली घटना स्कंदपुराण के काशी खण्ड में आती है-
त्रेता युग में किसी समय भगवान् शिव के एक भक्त वाल्मीकि भगवान् कपर्दीश्वर के एक उत्साही उपासक बन गए। एक बार उन्होंने मार्गशीर्ष मास में विमलोदक तीर्थ में दोपहर में स्नान किया और फिर अपने पूरे शरीर पर भस्म लगाई और कपर्दीश्वर लिंग पर ध्यान केंद्रित करते हुए ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करना शुरू कर दिया। उन्होंने लिंग की प्रदक्षिणा की और विमलोदक कुण्ड के तट पर बैठ गए। अचानक उन्होंने देखा कि एक भयानक और भयावह राक्षस उनके सामने खड़ा है। वाल्मीकि को डर नहीं लगा क्योंकि वह भस्म कवच पहने हुए थे और भगवान् शिव के भक्त थे। बहुत शान्त स्वर में उन्होंने राक्षस को अपना परिचय देने के लिए कहा। दयालु ब्राह्मण को देखते हुए राक्षस ने अपने हाथ जोड़े और अपने जीवन के बारे में
बताना आरम्भ किया।।
“पिछले जन्म में मैं गोदावरी नदी के तट पर प्रतिष्ठान नामक स्थान पर रहता था। मैं एक बाह्मण था और तीर्थयात्रियों से दान प्राप्त करता था। जिसके कारण में अब कष्ट भोग रहा हूँ। मैंने कभी कोई दान नहीं किया, बल्कि दान प्राप्त किया। यही कारण है कि मैं इस जन्म में राक्षस के रूप में पैदा हुआ हूँ। मैं एक रेगिस्तान में पैदा हुआ था और उस स्थान पर मुझे बहुत कष्ट सहने पड़े। मेरे पास पीने के लिए पानी या खाने के लिए भोजन नहीं था। मेरे शरीर पर कपड़े नहीं थे, इसलिए मुझे अत्यधिक मौसम की कठिनाइयों को सहन करना पड़ा। एक बार मैंने एक ब्राह्मण को अपनी ओर आते देखा। उसने सन्ध्या-वन्दन नहीं किया था और न ही शौच के बाद हाथ-पैर धोए थे। उसके शरीर की ऐसी स्थिति मेरे लिए उसके शरीर में प्रवेश करने के लिए अनुकूल बन गयी। अपने शेष जीवन का आनन्द लेने के लिए मैने उस ब्राह्मण के शरीर में प्रवेश किया। लेकिन मेरे दुर्भाग्य से वह ब्राह्मण कुछn धन कमाने के लिए काशी आया था। काशी में प्रवेश करते ही मैं उसके सारे पापों के साथ उसके शरीर से बाहर निकल गया। काशी में भूतों या पापियों के लिए कोई जगह नहीं है।
आज भी काशी के बाहर उसके पाप उसकी प्रतिक्षा कर रहे हैं। मैं भी उस ब्राह्मण के लौटने की प्रतिक्षा कर रहा हूँ। मैं प्रतिदिन खाने के लिए कुछ न कुछ खोजने प्रयाग जाता हूँ। जब भी में किसी खाने या पीने की चीज के पास जाता हूँ तो वह मुझसे दूर चली जाती है।
आज मैन एक सन्यासी को देखा। भूख से व्याकुल मैं उसे खा जाना चाहता था। जब मैं आक्रमण करने के लिए आगे बढा तो उस सन्यासी ने भगवान् शिव का नाम ले लिया। उस पवित्र नाम को सुनकर मेरे सारे पाप धुल गए और में काशी में प्रवेश करने के योग्य हो गया। जब मैंने उस सन्यासी के साथ काशी में प्रवेश किया तो काशी के पहरेदारों ने मेरी ओर देखा तक नहीं। भगवान् शिव का नाम लेने वाले पर यमराज भी दृष्टि नहीं डालते। मैं यहाँ तक आया हूँ और यहीं रहता हूँ। आज आपके दर्शन पाकर मेरा जीवन पवित्र हो गया है। कृपया मुझे इस शरीर ने मुक्त करें और मुझे सुरक्षा प्रदान करें।”
राक्षस की विनती सुनने के बाद वाल्मीकि ने राक्षस की मदद करने और उसे मुक्त करने का संकल्प लिया। उन्होंने उसे विमलोदक तीर्थ में स्नान करने और फिर कपर्दीश्वर महादेव के दर्शन करने के लिए कहा। इस तीर्थ के प्रभाव से उसका राक्षस शरीर नष्ट हो जायेगा। राक्षस को जल छूने से भी डर लग रहा था क्योंकि जल की रक्षा देवताओं द्वारा की जा रही थी। तब वाल्मीकि मुनि ने उसे अपने माथे पर विभूति लगाने की सलाह दी। भस्म लगाने के बाद जब राक्षस कुण्ड के पास पहुँचा तो देवताओं ने उसे नहीं रोका। जैसे ही उसने स्नान किया और उस तीर्थ का जल पिया वह तुरन्त पिशाच के शरीर से मुक्त हो गया। सुन्दर रत्नों और मालाओं ने सुसज्जित दिव्य शरीर धारण करके वह बाहर निकला और उस विमान पर चढ़ गया जो उसे लेने के लिए आया था। जाते समय उसने बाल्मीकि मुनि को प्रणाम किया और कहा- “आपकी कृपा और इस तीर्थ की महानता से मुझे मुक्ति मिली है। आज से इसे पिशाचमोचन कुण्ड के नाम से जाना जाएगा। यदि कोई पिशाच इस तीर्थ में स्नान करता है तो उसे तुरन्त मुक्ति मिल जाती है। जो कोई भी स्नान करके पितरों का श्राद्ध या तर्पण करता है उसे तुरन्त पिशाच के शरीर से मुक्ति मिल जाती है। जो कोई भी इस कुण्ड में स्नान करके भगवान् कपर्देश्वर की पूजा करता है और अन्न्नदान करता है उसे कभी किसी चीज का डर नहीं रहता।”
तभी से वाराणसी में पिशाचमोचन तीर्थ पापों का नाश करने वाले के रूप में प्रसिद्ध हो गया।
काशी खंड में कहा गया है-
पैशाचमोचने तीर्थे संभोज्य शिव योगिनं कोटि भोज्य फलं सम्यम् एकैका परि संख्यायाः।
जो कोई पिशाचमोचन तीर्थ में एक शिव योगी को भोजन कराता है उसे करोड़ों शिवयोगियों को भोजन कराने का फल मिलता है।
बह्महत्यादयः पापाः विनश्यन्त्यस्य पूजनात्।
पिशाच मोचने कुण्डे स्नातः स्यात्प्रश मोर्यते: ।।
(पद्मपुराण)
कपर्दीश्वर महादेव के पूजन से ब्रह्म हत्या का पाप भी दूर हो जाता है और पिशाच मोचन में स्नान करने से उस व्यक्ति के पितृगण मुक्त हो जाते है।
कपर्दी नामक गणप: शम्भोरत्यन्त बल्लभ:।
पित्रिशादुत्तरे भागे लिंगं संस्थापक शाम्भवं।।(काशीखण्ड)
महादेव के अत्यन्त प्रिय गणों में प्रधान एक गण जिसका नाम कपर्दी है जिसने पितृश्वर के उत्तर भाग में कपर्दीश्वर शिवलिंग की स्थापना की।
इस आख्यान से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें केवल लेना ही नहीं देना भी सीखना चाहिए। केवल अधिकार की बात न करके कर्तव्य के विषय में भी विचार करना चाहिए।
इसी कपर्दीश्वर महादेव के मन्दिर की आज स्वयंसेविकाओं ने साफ- सफाई करके उनकी पूजा अर्चना की तथा लोगों को भी इसका महात्म्य बताकर इसे स्वच्छ रखने के लिए जागरूक किया।
नुक्कड नाटक के माध्यम से स्वयंसेविकाओं ने प्लास्टिक के दुष्प्रभाव तथा उसे शुद्ध कर पुन: उपयोग में कैसे लाया जाए इस विधि को लोगों को बताया। प्लास्टिक का उपयोग न करने का संदेश भी इस नाटक के माध्यम से दिया गया।