धर्मेन्द्र कसौधन(प्रदेश ब्यूरो):परमार्फेंस अप्रेजल रिपोर्ट (पार) न देने वाले कालेजों को दिल्ली उच्च न्यायालय से राहत मिल गई है। पार न देने के चलते नेशनल काउंसिल आफ टीचर्स एजुकेशन (एनसीटीई) ने कालेजों को नए सत्र में बीएड, एमएड और बीटीसी में प्रवेश लेने के अधिकार से वंचित कर दिया था। इस आदेश के बाद चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के अंतर्गत मान्यता प्राप्त करीब तीन सौ बीएड कालेजों को झटका लगा था। सहारनपुर के शाकुंभरी विश्वविद्यालय को मिलाकर यह संख्या और भी ज्यादा है। सीसीएसयू के अंतर्गत करीब 100 कालेजों ने ही पार भरा था। अब बरेली विश्वविद्यालय की ओर से जुलाई में बीएड प्रवेश परीक्षा कराने के बाद सभी कालेज काउंसिलिंग के जरिए दाखिला करा सकेंगे।
गत वर्ष लागू हुई थी ये व्यवस्था:
बीएड कालेजों में शिक्षण प्रशिक्षण की गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए एनसीटीई ने पिछले साल ही पार की व्यवस्था लागू की थी। एनसीटीई ने स्पष्ट किया था कि जो कालेज ऐसा नहीं करेंगे, उन्हें अगले सत्र से बीएड, एमएड और बीटीसी पाठ्यक्रम में प्रवेश की अनुमति नहीं मिलेगी। कालेज प्रबंधनों को यह व्यवस्था रास नहीं आई और वह इसके खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट चले गए। कालेजों की अपील पर हाई कोर्ट ने एनसीटीई के निर्णय पर स्थगन आदेश जारी करते हुए कालेजों को प्रवेश की अनुमति दे दी है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि कालेजों को पार देने के लिए अतिरिक्त समय मिलेगा लेकिन सभी को यह रिपोर्ट देनी ही होगी। इलाहाबाद हाई कोर्ट की सिंगल व डबल बेंच से राहत नहीं मिलने पर प्रदेश के बीएड कालेज सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। सुप्रीम कोर्ट ने भी उन्हें राहत देने से मना कर दिया और पार देने की अनिवार्यता जायज ठहराई।