औरैया – अटसू क्षेत्र के गांव कुल्हुरुआ में चल रही सप्ताहिक श्रीमद् भागवत कथा मे पांचवे दिन रविवार को पधारे सरस कथा वाचक महेश शास्त्री दिबियापुर औरैया ने बतायाl भगवान कृष्ण और सुदामा बचपन में एक ही गुरु से शिक्षा दीक्षा देने गुरुकुल में साथ रहे तभी मित्रता हो गई थीl लेकिन वक्त के साथ भगवान द्वारकाधीश हो गए सुदामा दीन दशा में जीवन जीने लगे एक बार जब भी अपने बचपन के मित्र से मिलने द्वारकाधीश पहुंचे हैl
तो उनकी दीन दशा देख द्वारपाल जाने नहीं दिया।जब भगवान को खबर मिलती ही वह नंगे पांव दौड़ पड़ते हैं ।और मिलकर गले लगाते हुए सच्ची मित्रता दिखाते हैं l मित्रता में जाती पाती ऊंच-नीच से परे होकर निभाई जाती है। मित्र से बढ़कर कोई रिश्ता हो नहीं सकता l कथा में विधिवत चरित्र चित्रण को सुधी जनो को सुनाया शास्त्री ने कथा में वर्णन करते हुए बताया कि आज कल लोग मित्रता को भौतिक सुख व साधना को देखकर करते हैं l जो कि मतलब परस्त होती है l जिसमें जब तक लोगों का मतलब हल होता है, तभी तक के लिए मित्र बनाए जाते हैं l जबकि मित्रता तो कृष्ण सुदामा की थी। जिसके तार दिलों से जुड़े थेl इसी सोच को लेकर गरीब सुदामा बचपन के यार से पत्नी के कहने पर एक मुट्ठी में कन्दुक की पोटली लेकर महलो में पहुंचे तो द्वारपालों ने महाराज को बताया कि एक भिखरी आपसे मिलना चाहता हैl
तो प्रभु के परिचय पूछने पर बताया ,,धोती फटी सी लटी डुपटी करि पाह उपानह कीना, बतात है नाम सुदामा इतने सुनते ही भगवान सिंहासन छोड़ उपानहे ही मिलने को दौड़ पड़ते हैं l मिलकर गले लगाते हुये भीतर ले जाकर सिंहासन पर बैठाया और पैर धोने को पानी लाते हैं तभी कहा गया , पानी परात को छुओ नहि नैनन के जल पग धोए, ऐसा अकड़ प्रेम ही मित्रता को सार्थक बना सकता है l लेकिन विदेशी सभ्यता ने अपने समाज में दोस्ती नाम को कलंकित कर दिया है l आजकल दोस्तों का नैतिक पतन हो गया है l जरा सी बात बिगड़ने पर मन मलीन करते हुए गिराने के भाव पाल लेते हैं l जिससे समाज में एक दूसरे से लोगों का भरोसा उठ रहा है l अंतिम दिवस पर कथा में सुदामा चरित्र उन लोगों की आंखों में आंसू निकल रहे हैं l
रिपोर्टर रजनीश कुमार