वाराणसी में इकबाल अहमद खलिफा ने हजारों शागिर्द को इस खेल को सिखाया है आज उनकी पांचवीं पीढ़ी इस खेल को बढ़ावा दे रहे हैं वाराणसी के जलालीपुरा कासी विद्यापीठ के रहने वाले इकबाल अहमद खलिफा बजरडीहा में सन् 1968 में आएं थें यहां आने के बाद लोगों ने राए दिया कि आप बजरडीहा में भी एक अखाड़ा चालु करें ताकि यहां के छोटे बड़े बच्चे हैं इस कला को सिखे और बनारस के लिए एक मिसाल कायम करेंतब जाकर जनाब इकबाल अहमद खलिफा ने इस खेल को बच्चों को सिखाना शुरू किया आज बजरडीहा से लेकर बजरडीहा के बाहर तक के बच्चे सिखने आंतें गए और सिखते गए आज इकबाल अहमद खलिफा के शागिर्द दुसरे जगह चलें गए हैं वहां पर अपना घर द्वार बनाकर रहने लगे और वहां पर भी एक अपना अखाड़ा चालु कर के वहां पर बच्चों को खेल को सिखा रहे हैं और इस खेल को बढ़ावा दे रहे हैं आज जनाब इकबाल अहमद खलिफा की पांचवीं पीढ़ी इस खेल को बढ़ावा दे रहे हैं इस खेल चलाते हुए लगभग 125 साल ज्यादा समय हो गया है इस खेल में शामिल खेल बहुत सारे खेल है जैसे लकड़ी पटा बना सटका बनैठी झुमर ढ़ाल तलवार भाला डोर बनैठी और भी बहुत सारे खेल है जिसमें एक खिलाड़ी कई तरह के खेल को खेलते हैं यही एक मात्र ऐसा खेल जिसमें एक खिलाड़ी आनगीनत खेल को खेलते हैं उत्तर प्रदेश सरकार एवं खेल मंत्री से मांग कर रहा हूं कि इस तरह के खेल को भी बढ़ावा दिया जाए ताकि छोटे तबके के खिलाड़ी को आगे बढ़ने का मौका मिले और देश विदेश में अपने देश का नाम रौशन करेंउत्तर प्रदेश मीडिया प्रभारी वसीम अहमद ने कहा कि इस तरह के खेल को बनाने के लिए खिलाड़ी को काफी मेहनत करनी पड़ती हैं बावजूद इसके कि इस तरह के खिलाड़ीसिर्फ अपने इलाके में ही सिमट कर रह जा रहा है जैसे कबड्डी खो-खो कुस्ती जम्प दंगल जैसे खेलों को बढ़ावा दिया जा रहा है उसी तरह इस खेल को भी बढ़ावा दिया जाए ताकि खिलाड़ी को आगे बढ़ने का मौका मिले जिस तरह सरकार के तरफ से कई तरह के खेल को बढ़ावा दिया जा रहा और समय समय पर कंम्पटिशन प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता हैं उसी तरह इस खेल को भी सरकार के तरफ से बढ़ावा दिया जाए