संक्षिप्त परिचय: यह एक पत्रकार पर कविता है जो लोकतंत्र के चतुर्थ स्तंभ को समर्पित है जो दिन रात कड़ी मेहनत और लगन शीलता से हम सब लोगों तक न केवल खबरें पहुंचाते हैं बल्कि समाज को सच्चाई से भी रूबरू कराते हैं।

अत्याचार अन्याय के विरुद्ध,
भरता नित नई हूंकार हूँ।

“हाँ मैं एक पत्रकार हूँ।”

लोकतंत्र का चतुर्थ स्तंभ हूँ,
अन्याय के विरुद्ध, सच के संग हूँ।
मजदूर और मजबूर की आवाज,
समाज का एक अभिन्न अंग हूँ।
सच के लिए हरदम लड़ूँ,
निर्भीक हूँ नहीं लाचार हूँ।

“हाँ मैं एक पत्रकार हूँ।”

मेरी आवाज को रुकना कभी आया नहीं,
मेरी कलम को झुकना कभी आया नहीं।
रोज मिलते हैं सियासत के नए पहरेदार,
पर मेरे अस्तित्व को कोई गिरा पाया नहीं।
आईना दिखाने का साहस है मुझमें,
झूठ के लिए मैं उसकी हार हूँ।

“हाँ मैं एक पत्रकार हूँ।”

✍️ ब्यूरो रिपोर्ट आलोक मालपाणी (बरेली मंडल)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *