दुनिया के सभी मुल्कों की तरक्की उसमें रहने बसने वाले इंसानों की तरक्की पर निर्भर करती है हर मुल्क में भिन्न-भिन्न जाति समूह के लोग पाए जाते हैं और सभी जातियों की अपनी अपनी संस्कृति और परंपरा होती है, आज के दौर में दहेज लगभग सभी जातियों में विद्यमान एक परंपरा है, आधुनिक दौर में उन सभी स्थापित परंपराओं को खत्म करना अति आवश्यक है जो एक प्रजातंत्रात्मक देश में समानता के सिद्धांत को प्रभावित करती हैं तथा समाज व देश की तरक्की में बाधक बनती हैं!
दहेज प्रथा इसमें एक प्रमुख बाधा है इसे रोकने के लिए संसद ने 1961 में दहेज प्रतिषेध अधिनियम बनाया, अफसोस कि वह किताबों से निकलकर धरातल पर पूरी तरह से लागू नहीं हो पाया यानी नागरिकों ने उस पर पूरी तरह से अमल नहीं किया!
दहेज का मतलब किसी मूल्यवान प्रतिभूति से है यह हमारे समाज की एक अहम कुरीति के रूप में उभरती चली आ रही है, इस पे जिन पढ़े-लिखे, संपन्न और प्रतिष्ठित लोगों को रोक लगाना चाहिए वही इसका प्रदर्शन कर बढ़ावा दे रहे हैं, जिसका बुरा असर गरीबों पर पड़ता है उन्हें इससे मानसिक, भावनात्मक और असमानता जैसी प्रवृति का शिकार होना पड़ता है और अपनी लड़कियों को बोझ समझने लगते हैं!
इसके कारण देश में औसतन हर एक घंटे में एक महिला दहेज संबंधी कारणों से मौत का शिकार होती है, दहेज के कारण ही घरेलू हिंसा, महिला उत्पीड़न, आईपीसी 498 A, मारपीट, सीआरपीसी 125, तीन तलाक, आदि अपराध होते हैं, लोग अदालतों के चक्कर लगाकर हजारों रुपए व कीमती समय बर्बाद करते हैं और सरकारी मशीनरी के प्रयोग से देश पर आर्थिक बोझ पड़ता है!
अगर सभी जातियों के पढ़े-लिखे, समाज व देश हित में सोचने वाले लोग इस प्रथा को खत्म करने के लिए अपने समाज से इस्लाही तहरीक (सुधार आंदोलन) शुरू कर दें तो यह पूरी तरह खत्म हो जाएगी!
हमने अपने साथियों के साथ अपनी गद्दी (गाज़ी) बिरादरी से इस कुरीति को खत्म करने की तहरीक शुरू कर दी है!
भारत के विभिन्न राज्यों में गद्दी बिरादरी के लोग रहते हैं हर क्षेत्र में किसी न किसी रूप में दहेज का चलन है हमारे समाज में अधिक दहेज की मांग करना, भारी-भरकम बारात ले जाना, तरह तरह का खाना बनवाना, बड़े-बड़े भौकाली लोगों को दावत देने को लोग अपनी प्रतिष्ठा समझते हैं! हम किसी से कम नहीं की भावना में जीने वाले हमारे गद्दी भाइयों यह सोच हमारी बिरादरी, समाज और देश की तरक्की में बाधक है!
और तो और बहुत से पढ़े-लिखे हमारे नौजवान साथी यह सोच बना लेते हैं कि पढ़ लिख कर जब हमें नौकरी मिल जाएगी तो किसी पैसे वाले परिवार से हमारा रिश्ता होगा खूब दहेज मिलेगा और बहुत हसीन बीवी, यानी पढ़े-लिखे और नौकरी पेशा लड़कों में दहेज की इच्छा चार गुना बढ़ जाती है, और लड़की वाले भी यह सोच बना लेते हैं कि लड़का नौकरी वाला या पैसे वाला ही हो दहेज चाहे जितना देना पड़ जाए, मेरे गद्दी भाइयों यह सोच गलत है क्योंकि लालच में किया गया निकाह गलत है!
मेरे गद्दी भाइयों हमारा दीन इस्लाम है और हमारे आदर्श हजरत मोहम्मद स. हैं, हमें अपने दीन और अपने आदर्श के बताए हुए रास्ते पर चलना है!
हुजूर से शादी हजरत बीबी खदीजा रजि. ने इसलिए नहीं किया था कि वह कोई सरकारी हाकिम है या बहुत बड़े व्यापारी या जमींदार या किसी सियासी ओहदे पर हैं, बल्कि इसलिए किया था कि उनके अख्लाक, आदत, किरदार, व्यवहार, ईमानदारी, सादगी और सच्चाई की कोई मिसाल नहीं!
मेरे नौजवान साथियों धन, दौलत, पद, प्रतिष्ठा हासिल करो मगर इसकी वजह से निकाह में विलंब ना करो और यह मिल जाने पर दहेज का लालच ना करो, तुम्हारा पद, दौलत तो लोगों को ही पसंद आएगी, लेकिन उसके साथ सादगी पसंद नेक इंसान बनो जो खुदा को पसंद आएगा!
हम अपने ऑल इंडिया गद्दी समाज फेडरेशन के सभी अविवाहित नौजवान साथियों से गुजारिश करते हैं कि संकल्प लो कि हम अपनी शादी में बिल्कुल दहेज नहीं लेंगे दोस्तों अगर तुम्हीं इस पर अमल नहीं करोगे तो बिरादरी इस पर अमल कैसे करेगी, हुजूर साहब हर बात पर पहले खुद प्रैक्टिकल करते थे तब समाज के लोग मानते थे लिहाजा आप लोग इस पर अमल करने की मेहरबानी करें, दोस्तों त्याग अल्लाह को बहुत पसंद है, दहेज का त्याग करो!
बिहार में नौशाद अंजुम ने सैकड़ों साथियों के साथ संकल्प लिया है!
उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश आदि के संगठन से जुड़े हमारे नौजवान साथी भी इस पर अमल करें और संकल्प लें!
हुजूर ने अपनी बेटी की शादी में गृहस्ती की 9 चीजे दी थी और चंद खास लोगों को दावत दी थी!
हम लोग हुजूर की सुन्नत पर अमल करें बरात में अपने चंद खास रिश्तेदारों व दोस्तों को ही ले जाएं ताकि लड़की वाले पर खाना देने का दबाव खत्म हो जाए!
इस्लाम के मुताबिक निकाह में लड़की पक्ष का खर्च ना के बराबर है वलीमा आदि लड़के वाले को करना चाहिए!
मेरे गद्दी समाज के लोगों हमें अपने दीन पर मजबूती से अमल करना चाहिए, सुन्नत व हदीस के मुताबिक ही शादी करना चाहिए!
संगठन से जुड़े सभी पदाधिकारी दहेज न लेने देने का संकल्प लें जिनके बेटों की शादी होनी है वह दहेज न लेकर मिसाल बनाएं!
आज हमारी बिरादरी में दहेज चरम सीमा पर है लड़के वाले बुलेट, बुलेरो आदि मांगने को अपना मान सम्मान समझने लगे हैं, इससे हमारे मध्यम और गरीब भाइयों को आर्थिक और मानसिक समस्या का सामना करना पड़ता है, लोग कर्ज में डूब जाते हैं, चिंता में बीमारियों के शिकार हो जाते हैं, अपने बच्चों की पढ़ाई लिखाई पर पैसा खर्च नहीं कर पाते हैं, समाज में खुद को कमतर समझने लगते हैं!
मेरे प्यारे गद्दी भाइयों सबको बराबरी पर लाने का प्रयास करो किसी को एहसास ए कमतरी का शिकार ना होने दो इससे हमारा समाज तरक्की करेगा!
मेरी बिरादरी के पढ़े-लिखे, संपन्न लोगों से गुजारिश है इस इस्लाही तहरीक में हमारा साथ दें! जो नौजवान नौकरी पा गए हैं संपन्न हैं या पढ़े लिखे हैं वह बिल्कुल दहेज ना लें! और जो लोग नौकरी में हैं या संपन्न हैं वह अपने बच्चों की शादी में बिल्कुल दहेज ना लें!
अपने गरीब बिरादर भाइयों की बेटियों से निकाह करने में गुरेज न करें पहले से आधुनिक (फैशन पसंद) लड़की की तलाश न करें, बल्कि सादगी पसंद लड़कियों को शादी में प्राथमिकता दें, और लड़की वाले भी अच्छे अखलाक के मालिक लड़के को शादी के लिए पसंद करें ताकि बिरादरी से स्वतः दिखावा आदि का चलन खत्म हो जाए!
और बिरादरियों की तरह इस समय हमारी बिरादरी में भी एक और चलन चल गया है, कि पहले लड़की वाले लड़का देखने जाते हैं फिर 6,7 लोग लड़के की तरफ से लड़की देखने जाते हैं, और फिर लड़का लड़की को एक दूसरे को दिखाया जाता है और यह क्रम कई बार चलता है यानी कई लड़की देखने के बाद ही शादी तय हो पाती है, मेरी समझ से यह चलन भी गलत है इसे खत्म करना चाहिए! मजे की बात यह चलन भी पढ़े-लिखे, संपन्न और तथाकथित दीनदारों ने ही शुरू कर दिया है, मेरे संगठन के नौजवान साथियों इसे भी खत्म करो, आगे न बढ़ने दो, लड़कियों की नुमाइश बंद कर दो, शादी के समय स्टेज पर रंग चुंग के दुल्हन की नुमाइश बंद कर दो,अगर मुसलमान हो तो इस्लाम पर अमल करो!
हम मौलवी, हाफिज और उलेमाओं से गुजारिश करते हैं कि उस जोड़े का निकाह बिल्कुल न पढ़ाएं जहां दहेज का प्रदर्शन हो रहा हो यानी दहेज दिया जा रहा हो, कोई निकाह बिना मौलवी साहब के संपन्न नहीं होता फिर आज तक किसी मौलवी ने ऐसे निकाह पढ़ाने से इंकार क्यों नहीं किया? क्योंकि उन्हें भी पैसे का लालच है पैसे वाले लोग उन्हें मोटी फीस देते हैं!
हमने अपनी गद्दी बिरादरी में 90% ऐसे लोगों को देखा है जिनकी शादी पहले अपने समकक्ष परिवार में हो गई थी बाद में वह नौकरी पा गए या संपन्न हो गए तो पहले वाली बीवी को छोड़कर दूसरी शादी कर ली जो कि अति निंदनीय है, हां अगर पहली बीवी संतुष्ट है तो दूसरा निकाह करना गलत नहीं!क्या मौलवी साहब को दूसरा निकाह पढ़ाते वक्त इसकी जानकारी नहीं होती है? और अगर होती है तो वह इस पर प्रश्नचिन्ह क्यों नहीं लगाते और पहली बीवी को दीन के मुताबिक संतुष्ट क्यों नहीं करवाते?
मैं दूसरे निकाह का विरोधी नहीं, बीवियां भी अगर पति संतुष्ट नहीं है या करना चाहता है तो उसे दूसरा निकाह करने की इजाजत दें और संतुष्ट रहें, और पति अपनी सभी बीवियों को संतुष्ट रखें, यही दीन कहता है!
उलमा हजरत से हमारी गुजारिश है इस इस्लाही तहरीक में हमारा साथ दें दहेज और नुमाइश पसंद निकाहों को ना कहें!
मेरे सभी गद्दी भाइयों और ऑल इंडिया गद्दी समाज फेडरेशन के साथियों दहेज और दिखावा का पूर्णतया त्याग करो, इस इस्लाही तहरीक में हमारा साथ देने की मेहरबानी करें, दावतों में गरीबों को दावत देना बिल्कुल ना भूलें, खुद को सच्चा मुसलमान साबित करें!
अगर हमारे समाज के सभी पढ़े लिखे और संपन्न लोगों का साथ हमें मिल गया तो हम इस कुरीति को खत्म कर देश में मिसाल बन जाएंगे! इंशा अल्लाह! शेयर करना ना भूलें!
बहुत बहुत शुक्रिया!
लेखक (अपील कर्ता) – आपका मोबीन गाज़ी कस्तवी
सामाजिक कार्यकर्ता एवं राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी ऑल इंडिया गद्दी समाज फेडरेशन