✍️रोहित सेठ

किवाड़ (दरवाजा) की सांकल (कुंडी) पर हाथ रख इंतजार करती है स्त्री अपनों का,वह उसका अपना कोई भी हो सकता है, बेटी है तो पिता का इंतजार,बहन है तो भाई का इंतजार,माँ है तो बच्चों का इंतजार,पत्नी है तो पति का इंतजार और प्रेमिका है तो अपने प्रेमी का इंतजार…..पर करती है वह सिर्फ इंतजार ….
एक स्त्री करती हैं इंतज़ार जिसे वह प्रेम करती है….
किवाड़ की भूमिका अहम होती है,जो कोमल टहनियों से परिवर्तित होकर लकड़ी के रूप में कठोरता को लिए अडिग है,उस पर सांकल की गहराई और स्त्री का हाथ सांकल पर ,
निगाहें किवाड़ के पीछे से उन रास्तों पर,जहां से चलकर आता है अनेक रिश्तो से बना हुआ प्रेम….एक स्त्री खुद को कभी किवाड़ के पीछे, तो कभी किवाड़ के आगे पाती है,घर से बाहर तक एक धुरी की तरह घूमती है …एक स्त्री दहलीज के बाहर एक स्त्री की स्वतंत्रता सिर्फ उसके अस्तित्व से बनी होती है।


किवाड़ के पीछे इंतजार करती स्त्रियों की सिसकियां जो सुनाई नहीं देती….उनकी सिसकियां सुनती है सिर्फ उनकी आत्मा…..सांकल और किवाड़ के बीच दहलीज पर खड़ी एक स्त्री कर सकती है घंटो…. महीनों और ना जाने कितने वर्षों का इंतजार…..दुआ करती है सलामती का…अपने उन रिश्तो का…. जिनको बढाती और सींचती है अपने प्रेम से ,
आंखों से टपकते आंसू को छुपाती फिरती है और फिर आंचल से पोछती अपने नयन ,
हो जाती है गुमसुम सी
अगर इंतजार करती स्त्री का सब्र टूटता है तो विचलित होती है उसकी आत्मा और इंतजार जब हद से पार हो जाए तो कुदरत भी अपना रास्ता बदल देती है……वक्त किसी का इंतजार करें…. ऐसा संभव नहीं….स्त्री के इंतजार से अनमोल कोई उपहार नहीं, जब सारी दुनिया सोती है….तो एक स्त्री इंतजार करती है अपनों का….उस बंद दरवाजे के पीछे की किवाड़ को खुला रखती है…. किवाड़ को वह खुला रखती है….एक टकटकी लगाए रहती है… कि कोई तो अपना आता ही होगा….. हर रिश्ते में….हर रूप में इंतजार….
सब्र….सिर्फ एक स्त्री में ही निहित है….अगर स्त्री ने घर के किवाड़ को बंद कर दिया तो समझो इंतजार खत्म हुआ,
और उसके आंचल की खुशबू में सुकून के कुछ पल बिखर जाते हैं,जो जीवन में बहुत अनमोल होते हैं….याद रहे इतना कि किवाड़ के पीछे इंतजार करती स्त्री के इंतजार में छुपा होता है अपनों के लिए असीम प्रेम ,
प्रेम ही है जो इंतजार को परिभाषित कर उसे स्त्री के किवाड़ और दहलीज तक के सफर की ओर ले जाता है…. पुनः किवाड़ अपने अस्तित्व पर खड़ा उसका गौरव बढाता है, उस स्त्री का….उसके सब्र का…. उसके इंतजार का ,
स्त्री तुम एक स्त्री हो,
तुम किवाड़ हो,
तुम सांकल हो,
तुम धुरी हो,
तुम ही स्त्री हो
तुम ही स्त्री हो……

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