वटवृक्ष की टहनी को तोड़कर का पूजन करना अपराध -पंडित राजेश अग्निहोत्री भागवताचार्य।
रोहित सेठ
इस वर्ष 6 जून गुरुवार को बड़ अमावस्या है।इस दिन सौभाग्यवती माताएं बहनें अपने पति की दीर्घायु और किसी अनिष्ट से बचाने के लिए और अपने पति की रक्षा के लिए वटवृक्ष की पूजा करती हैं। लेकिन आज आधुनिकता के दौड़ में कुछ माताएं बहनें वटवृक्ष की टहनी को तोड़बाकर अपने घर में उस टहनी को मंगाकर उस टहनी की ही पूजा कर लेती हैं यह अच्छी बात नहीं है। ऐसा करने से उन्हें दोष लगता है। माताओं बहनों को वटवृक्ष के पास जाकर वटवृक्ष की ही पूजा करना चाहिए और पूजा के बाद वहां कथा भी मन लगाकर सुननी चाहिए। हमें यह विचार अवश्य करना चाहिए कि हम सब की तरह वृक्ष भी सजीव हैं यदि कोई हमारे हाथ को तोड़कर फिर उसकी पूजा करें तो क्या हमको अच्छा लगेगा? या हम उस व्यक्ति से खुश होंगे? जिस प्रकार हमारे हाथ कोई तोड़े तो हमें कष्ट होगा कि नहीं? इसी प्रकार यदि हम वृक्षों के अंगों को हानि पहुंचाते हैं तो वृक्षों को भी कष्ट होता है और वो दुखी होते हैं जबकि पूजा तो खुश करने के लिए की जाती है। सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राणों को यमराज जी से भी वापस ले लिया था। और उसे पहले ज्ञात भी हो गया था कि उसके पति की आयु का आज अन्तिम दिवस है इसलिए वज्ञ अपने पति के साथ ही जंगल में भी गई थी।यह पतिव्रता धर्म निभाने वाली स्त्री की शक्ति। पत्नी का धर्म होता है मन, वचन और कर्म से पत्नी को प्रसन्न रखना।इस दिन सौभाग्यवती माताओं बहनों को अपने पति को मन, वचन और कर्म से संतुष्ट और प्रसन्न अवश्य रखना चाहिए।