“: लखीमपुर खीरी में ‘हर गांव तालाब’ से उपजा नवजीवन का संकल्प”जब प्रशासन ने थामी फावड़े की मूठ, तब मिट्टी ने गढ़ी आशा की कथाअभिषेक कुमार और दुर्गा शक्ति नागपाल की अगुवाई में जल-संरक्षण बना जन-आस्था का उत्सवबहु आयामी समाचार संवाददाता मोहम्मदी जिला खीरी मोहम्मद आमिर 23 मई Id.no UP3105872262804MAR06081985Ref.no 22AUG2024LMP001727लखीमपुर खीरी, 23 मई।जब धरती की छाती तपती है और नदियाँ अपने पथ को भूलने लगती हैं, तब आवश्यकता जन्म देती है संकल्प को। कुछ ऐसा ही संकल्प आकार ले रहा है लखीमपुर खीरी की उर्वरा मिट्टी में, जहाँ ‘हर गांव तालाब’ योजना, केवल एक प्रशासनिक परियोजना नहीं, बल्कि जल-आस्था का जनांदोलन बन चुकी है।इस पुनीत प्रयत्न की अगुवाई कर रहे हैं जनपद के मुख्य विकास अधिकारी अभिषेक कुमार, जिनकी दूरदृष्टि ने 1000 गांवों को जल-संरक्षण के पथ पर अग्रसर कर दिया है। शुक्रवार को तहसील सदर के ग्राम अमानलाला में, जब जिलाधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल और अभिषेक कुमार ने वैदिक मंत्रोच्चार के बीच स्वयं फावड़ा उठाया, तो मानो मिट्टी ने अपने गर्भ में भविष्य के जल का वचन लिख लिया।तालाब नहीं, जीवन का नव-संचयनयह तालाब केवल वर्षा जल का संचय नहीं कर रहे, ये ग्राम्य भारत को जल-स्वराज्य की ओर ले जाने वाले तीर्थ बनते जा रहे हैं। हर तालाब में इनलेट व आउटलेट की वैज्ञानिक व्यवस्था, पारंपरिक जलग्रहण की समझ से संयुक्त होकर एक नए युग का संकेत देती है।डीएम का संदेश : “यह जल, अगली पीढ़ियों की धरोहर है”कार्यक्रम के दौरान डीएम दुर्गा शक्ति नागपाल ने कहा, “गांव जब अपना जल खुद सहेजने लगें, तो कोई संकट टिक नहीं सकता। ये तालाब किसी योजना की अंतिम रेखा नहीं, बल्कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जाती उत्तरदायित्व की रेखा हैं।”15 जून – एक तारीख नहीं, एक तपस्या की पूर्णाहुतिमनरेगा के अंतर्गत चल रहे इस महायज्ञ का लक्ष्य है कि 15 जून तक जल संचयन का यह महासमर पूर्णता को प्राप्त हो। नहरों और पंपों के परे, अब गांव के हृदय में होगा उनका अपना जल-स्रोत।बांदा से खीरी तक – जल संघर्ष की अनवरत कथागौरतलब है कि डीएम नागपाल पूर्व में बांदा जिले में जल सुरक्षा की जो इबारत लिख चुकी हैं, उसके लिए उन्हें राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय जल पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। आज खीरी की धरती पर वही संकल्प नवकलेवर में प्रकट हो रहा है।अंत में : जब फावड़े की चोट से फूटे जलधाराएं यह आयोजन मिट्टी हटाने का नहीं, संभावनाओं को उगाने का उत्सव बन गया। बच्चों को बांटे गए मिष्ठान और ग्रामीणों के चेहरों पर खिले उत्साह ने बता दिया कि जब शासन और जनता साथ चलें, तो जल संकट केवल शब्द रह जाता है, अनुभव नहीं।



