#लखीमपुर

हमारे खीरी जिले में स्वाधीनता आंदोलन की आग 1857 के गदर से पहले ही सुलग चुकी थी। दो स्वाभिमानी राजा लोने ¨सह और इंद्र विक्रम ¨सह की अगुवाई में आम जनता ने अंग्रेजी राज के खिलाफ बगावत का बिगुल 1856 के फरवरी माह में तब बजाया था जब अवध की नवाबी समाप्त की गई। तब मोहम्मदी ही जिला था और जेम्स थाम्सन को पहला जिलाधीश बनाया गया था।

लोने सिंह मितौली के शासक थे जिन्होंने १८५७ के प्रथम भारतीय स्वाधीनता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभायी। इसी कारण वे ईस्ट इंडिया कंपनी की सरकार में कुख्यात अपराधी के रूप में चर्चित हुए। उनका राज्य संयुक्त प्रान्त के मोहम्मदी जनपद के विशाल भू-भाग पर था। वर्तमान उत्तर प्रदेश का खीरी जनपद का मितौली गाँव इनके राज्य की राजधानी था।

कप्तान पैट्रिक यहां का सहायक जिलाधीश था। सीतापुर की तरफ से खतरे की आशंका के चलते इन लोगों ने यहां सेना की नई रेजीमेंट खड़ी की और सैनिक पुलिस का गठन किया। सीतापुर में हारने के बाद मोहम्मदी में नई मोर्चाबंदी के लिए यह अंग्रेज अफसरों की तैयारी थी। 31 मई 1856 को शाहजहांपुर में क्रांतिकारी सेनाओं से पिटने के बाद वहां बचे हुए अंग्रेजों ने पुवायां के राजा के वहां शरण ली। फिर मोहम्मदी लाकर इन अंग्रेजों को मितौली के राजा लोने ¨सह के पास शरण लेने भेजा गया। उस समय मितौली के किले से ही राजा लोने ¨सह के नेतृत्व में स्वतंत्रता समर का संचालन हो रहा था। राजा ने भारतीय परंपरा निभाते हुए इन्हें शरण दी और कचियानी में इनके रहने की व्यवस्था कर दी। अंग्रेजों ने अपना राजकोश भी मितौली के किले में भेजना चाहा, लेकिन इसे क्रांतिकारी सेना ने रास्ते में छीन लिया। इस राजकोश में एकलाख दस हजार रुपये था। यह घटना एक जून 1856 की है। चार जून को कप्तान पैट्रिक और कुछ भारतीय सैनिक व बचे अंग्रेजों को लेकर मोहम्मदी से भाग खड़ा हुआ। पहली रात उन्होंने बरवर में बिताई और पांच जून को इन सभी अंग्रेजों को औरंगाबाद के पास क्रांतिकारी सैनिकों ने मार डाला। यहां से अकेले जीवित कप्तान पैट्रिक को गिरफ्तार कर क्रांतिकारी राजा लोने ¨सह के पास मितौली ले गए। राजा ने इसे भी कचियानी भेज दिया। इसी बीच सीतापुर से अंग्रेज अफसर माउंट स्टूअर्ट जैक्सन के साथ भागी अंग्रेज टुकड़ी को भी राजा लोने ¨सह की शरण में रहना पड़ा। बाद में राजा ने इन सबको लखनऊ भेज दिया। सीतापुर के अंग्रेज कप्तान जॉन हिरसी व तत्कालीन मल्लापुर जिले के जिलाधीश मिस्टर गोने और कप्तान हे¨स्टग्ज के नेतृत्व में अंग्रेजों की दूसरी भगेडू टुकड़ी शारदा नदी पार कर राजा धौरहरा इंद्र विक्रम ¨सह के पासशरण लेने पहुंची। मित्र राजा लोने ¨सह की तरह राजा इंद्र विक्रम ¨सह ने भी कुछ समय बाद अंग्रेजों को लखनऊ भेजा, लेकिन खैराबाद के पास से यह सभी भाग निकले। धौरहरा के सैनिकों की टुकड़ी ने इन्हें निघासन में मोहाना नदी के किनारे धर दबोचा। जंगल में छिपे अंग्रेजों को क्रांतिकारियों ने मार डाला। कप्तान हे¨स्टग्ज और हिरसी किसी तरह भाग कर नेपाल के चीसापानी के घने जंगल में घुस गए। इस तरह पूरा जिला अंग्रेज शासन से मुक्त हो गया। यहां के राजाओं ने अपनी लड़ाई के साथ लखनऊ को भी सहयोग दिया। 1858 में लखनऊ के फिर से अंग्रेजों के कब्जे में जाने के बाद वहां से मौलवी अहमउल्ला शाह मोहम्मदी आ गए थे। पांच जून 1858 को पुवायां के गद्दार राजा जगन्नाथ ¨सह ने धोखे से मौलवी की हत्या कर दी। इसके बाद फिर अंग्रेजों ने मोहम्मदी नगर पर आक्रमण कर कब्जा कर लिया, लेकिन वहमोहम्मदी से बाहर निकलने का साहस नहीं कर सके। 17 अक्टूबर को ब्रिगेडियर कोलिन ट्रप ने भारी सेना लेकर मोहम्मदी पर आक्रमण किया। मितौली किले की घेराबंदी कर ली। 20 दिनों के भीषण युद्ध में मितौली गढ़ी की एक-एक ईंट अंग्रेजी तोपों से उड़ जाने तक ‘निहत्थे’ राजा लोने ¨सह अंग्रेजी सेना से जूझते रहे। आठ नवंबर 1858 को मितौली के सूने महल पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया। राजा लोने ¨सह के राज्य को अंग्रेजों ने अपने चाटुकारों में बांट दिया। इस तरह जिले पर अंग्रेजी सत्ता फिर से छा गई, लेकिन धौरहरा के राजा इंद्र विक्रम ¨सह सीना ताने अभी भी इस सत्ता को चुनौती दे रहे थे।

यहाँ एक विशाल किला और मन्दिर था, जिसे 1857 के विद्रोह के उपरान्त ब्रितानी शासन के पुनर्स्थापित होने पर ब्रितानी सेनाओं द्वारा नष्ट कर दिया गया। इसके ध्वंशावशेष आज भी इस स्थान पर मौजूद हैं जिनमें टीला, प्राचीन कुएं और मन्दिर के कुछ अंश देखे जा सकते हैं।

मितौली
मितौली जो कभी मितौलगढ़ के नाम से प्रसिद्ध था, १८५६ में ईस्ट इंडिया कंपनी ने जब इन इलाकों का अधिग्रहण करना प्रारम्भ किया तब मितौली के राजा लोने सिंह ने इस अधिग्रहण का विरोध किया, बेगम हज़रात महल के साथ मिलकर उनके पुत्र बिरजिस कदर की ताजपोशी करवाई और समूचे अवध में बेगम हज़रत महल के साथ मिलकर अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध स्वतंत्रता की लड़ाई का नेतृत्व किया। मितौली को राजा लोने सिंह ने एक वर्ष तक अंग्रेजों के आधीन नहीं आने दिया। आठ अक्टूबर सन १८५८ में कंपनी सरकार की सेनाओं ने मितौली पर अपना अधिकार कर लिया।

राजा लोने सिंह की गढ़ी
खीरी जनपद की मितौली तहसील में स्थित मितौली गाँव जिसके दक्षिण-पश्चिम में स्थित है यह ध्वंश गढ़ी जो अब एक टीले के रूप में है, इस गढ़ी की चौड़ी चौड़ी दीवारे जो पतली पकी हुई ईंट की बनाई गयी है स्पष्ट दिखाई देती हैं। गढ़ी में सात कुँए हुआ करते थे जिनमे अब भी ४ कुँए अच्छी स्थित में है। गढ़ी का क्षेत्रफल लगभग ५० हेक्टेयर से अधिक है किन्तु अब सिर्फ ५ हेक्टेयर में ही यह टीला सिमट चुका है।

गढ़ देवेश्वर महादेव मंदिर
ध्वस्त गढ़ी पर एक शिवालय स्थित है, जिसे राजा लोने सिंह ने स्वयं निर्मित कराया था, इस मंदिर के निकट एक विशाल कुआं और मंदिर की प्राचीरें बची हुई है। पुरातात्विक महत्त्व का यह शिवालय स्थानीय जनमानस द्वारा पूज्यनीय है।

प्रथम स्वाधीनता दिवस की १५८वीं वर्षगाँठ

प्रथम स्वाधीनता दिवस की १५८वीं वर्षगाँठ पर मितौली में आयोजित विशाल रैली
१५७ वर्ष पश्चात गढ़ी में गूंजा वन्दे मातरम्
राजा लोने सिंह की शासन सत्ता समाप्त होने के १५७ वर्ष उपरान्त पहली बार कृष्ण कुमार मिश्र-मैनहन के संयोजन में प्रथम स्वाधीनता संग्राम की १५८वीं वर्षगाठ पर क्रान्ति के महानायक राजा लोने सिंह की ध्वंश गढ़ी पर विशाल जनसभा का आयोजन किया गया जिसमें हजारों की संख्या में स्थानीय जनमानस, स्थानीय विधायक सुनील कुमार लाला एवं शिक्षकों ने सहभागिता की और वन्दे मातरम् का उदघोष किया साथ ही प्राचीन गढ़ देवेश्वर महादेव मन्दिर में पूजा अर्चना की गयी।

मोहम्मदी
मोहम्मदी ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार में जनपद मुख्यालय था। वर्तमान यह कस्बा खीरी जनपद के अंतर्गत है। मोहम्मदी कंपनी सरकार के डिप्टी कमिश्नर एवं असिस्टेंट कमिश्नर का मुख्यालय हुआ करता था।

By admin_kamish

बहुआयामी राजनीतिक पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष

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