छतरपुर:देश दुनिया में एकदम से लोगों के बीच कैसे मशहूर हुए मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में बागेश्वर धाम के महाराज पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री? क्या वाकई में इनके पास कोई करिश्माई शक्ति है जो रातों रात एक युवा संत या यह कह लें युवा कथा वाचक इतना मशहूर हो गया? वो लोगों के बीच चर्चा का विषय बना रहता है। बुंदेलखंड के इस युवा कथा वाचक या बागेश्वर धाम के महाराज का धीरू से लेकर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री बनने तक का सफर कैसा रहा?
बताया जाता है बागेश्वर धाम के महाराज कहे जाने वाले इस संत का जन्म छतरपुर जिले के ग्राम गढ़ा में 1996 में हुआ था।यह दो भाई एक बहन हैं।भाई छोटा है जिनका नाम सालिग राम गर्ग उर्फ सौरभ है। बहन का नाम रीता गर्ग है। पिता का नाम रामकृपाल गर्ग और माता का नाम सरोज है।बताया जाता है माता सरोज महाराज को प्यार से घर में धीरू बुलाती हैं और गांव के लोग धीरेंद्र गर्ग कहते हैं।
कहाँ और कैसे हुआ शुरू हुआ सफर
वैसे तो धीरेंद्र गर्ग बचपन से ही चंचल चतुर और हठीले थे।इनकी प्रारम्भिक शिक्षा गांव के ही सरकारी स्कूल में हुई। हाई स्कूल और हायर सेकेंड्री की पढ़ाई इन्होंने गांव के पास स्थित गंज गांव से की है।धीरेंद्र गर्ग का जन्म बेहद गरीब परिवार में हुआ था और उनके पिता गांव में पुरोहित गिरी करके अपने परिवार का भरण पोषण करते थे।एक समय ऐसा आया जब गांव में इनके परिवार के चाचा आदि ने गांव में रहने वाले परिवारों को आपस में पुरोहित गिरी के लिए बांट लिया। बंटवारा होने के बाद महाराज के परिवार पर आर्थिक संकट छा गया। उनकी माता सरोज ने भैंस का दूध बेचकर अपने परिवार का भरण पोषण किया। इस बीच बागेश्वर धाम के महाराज कुछ करने लायक हो रहे थे। वह लगातार गांव में लोगों के बीच बैठकर कथा सुनाने लगे और कथाओं में वह धीरे-धीरे इतने प्रखर होते गए कि उन्होंने साल 2009 में अपनी पहली भागवत कथा पास के ही गांव पहरा के खुडन में सुनाई। ऐसा करते-करते वह आस पास जाने जाने लगे और लोग अपने गांवों में भागवत कथा के आयोजनों में इन्हीं से कथा सुनने लगे।
धीरू से कैसे बने पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री बागेश्वर महाराज?
बताया जाता है कि पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के अंदर बचपन से ही लोगों को प्रभावित करने की क्षमता रही है। वह हमेशा कुछ नया कर दिखाने का जज़्बा रखते थे।इसलिए उन्होंने अपने गढ़ा गांव में स्थित शंकर जी के प्राचीन मंदिर को अपना स्थान चुना। इस मंदिर में भगवान शिव का ज्योर्तिलिंग है।जिसे बागेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां साल 2016 में ग्रामवासियों के सहयोग से विशाल यज्ञ का आयोजन किया गया। उसमें श्री बाला जी महाराज की मूर्ति की भी स्थापना की गई।तब से यह स्थान बागेश्वर धाम के नाम से जाना जाने लगा। लोगों का यहां पर आना जाना शुरू हुआ।
लोगों को धार्मिक ज्ञान और कथा से जोड़ने की कोशिश
बताया जाता है कि श्री बाला जी महाराज के मंदिर के पीछे धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के दादा सेतुलाल गर्ग संन्यासी बाबा की समाधि भी है। इसी स्थान पर धीरेंद्र गर्ग ने कई बार भागवत कथा का आयोजन किया। आसपास के इलाकों के साथ ही जिले के सभी धर्म प्रेमियों को बुलाना शुरू किया। अपने धार्मिक ज्ञान एवं शक्तियों और कथा की शैली से लोगों को जोड़ना शुरू किया तो इनके भक्त बढ़ने लगे। बागेश्वर का यह मंदिर बागेश्वर धाम कहलाने में देर नहीं लगी।यहीं से शुरू हुआ धीरू के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री कहलाने का सफ़र।बागेश्वर धाम के महाराज ने अपनी ऐसी आभा दिखाई की लोग हजारों लाखों की संख्या में यहां दर्शन करने पहुंचने लगे।
पर्चे पर मन की बात
महाराज ने बागेश्वर धाम में ऐसा दरबार लगाया कि देश दुनिया से लोग इनके दरबार में अपनी पीड़ा लेकर पहुंचने लगे। लोग कहते हैं कि दरबार में महाराज की ख़ासियत यह है कि वह पीड़ित के मन की बात पर्चे पर पहले ही लिख देते हैं।जिसे सुनकर सब हैरान हो जाते हैं। पहले महाराज अकेले बागेश्वर धाम में दरबार लगाते थे, लेकिन अब वह देश सहित विदेशों में भी दरबार लगाकर जनता के दिलो दिमाग पर छाए हुए हैं।
सनातन धर्म के भरते हैं उत्साह
धीरू पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री बने बागेश्वर धाम के महाराज के भक्त लाखों की संख्या में हैं और वह सनातन धर्म की रक्षा के लिए हमेशा धर्म प्रेमियों में उत्साह भरते रहते हैं।बागेश्वर धाम के महाराज की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई है कि अब वह अपने बयानों को लेकर भी आये दिन सुर्खियों में बने रहते हैं। वैसे महाराज अपनी कथाओं और बयानों में बुंदेली भाषा का इस्तेमाल जमकर करते हैं।